जयपुर (राजस्थान) : तारणतारन जिले की सिख छात्रा गुरप्रीत कौर को राजस्थान के जयपुर स्थित पूर्णिमा विश्वविद्यालय में न्यायिक सेवा परीक्षा में प्रवेश से रोका गया। कारण था कि वह अपने धार्मिक ककार—कड़ा और किरपान—पहने हुए थीं। यह मामला सिख धर्म के धार्मिक प्रतीकों के खिलाफ भेदभाव का प्रतीक बनकर सामने आया है।
इस घटना पर शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कड़ा विरोध जताया और ट्वीट कर इस पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने लिखा, "यह अत्यंत परेशान करने वाली बात है कि एक अमृतधारी सिख लड़की, गुरप्रीत कौर को राजस्थान न्यायिक सेवा परीक्षा में प्रवेश से वंचित किया गया, क्योंकि उसने अपने धार्मिक ककार—'कड़ा' और 'किरपान' पहने हुए थे।"
सुखबीर बादल ने कहा कि ये केवल "लोहा बने सामान" नहीं हैं, बल्कि सिखों की पहचान और आध्यात्मिकता के महत्वपूर्ण प्रतीक हैं, जिन्हें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। उन्होंने इस घटना को संविधान के उल्लंघन और सिख धार्मिक आस्थाओं के प्रति संवेदनहीनता करार दिया।
It is deeply disturbing to learn that a baptised Sikh girl, Gurpreet Kaur from TarnTaran Sahib district, was today denied entry to the Rajasthan Judicial Services examination at Poornima University, Jaipur, for wearing her sacred articles of faith — “Kara” and “Kirpan”.
▪️These… pic.twitter.com/SY0HBEIUwZ
— Sukhbir Singh Badal (@officeofssbadal) July 27, 2025
मुख्यमंत्री से की कार्रवाई की मांग
सुखबीर बादल ने राजस्थान के मुख्यमंत्री से अपील की कि वह इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करें और दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। उन्होंने ट्वीट में लिखा, "मैं राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री @BhajanlalBjp से अनुरोध करता हूँ कि वे तुरंत इस मामले में हस्तक्षेप करें और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित करें, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।"
गुरप्रीत को मिले विशेष अवसर की अपील
सुखबीर बादल ने राजस्थान उच्च न्यायालय से भी अपील की है कि वह गुरप्रीत कौर को RJS परीक्षा में बैठने का विशेष अवसर प्रदान करें, ताकि उसके धार्मिक अधिकारों का सम्मान किया जा सके।
सिख धर्म के प्रति संवेदनशीलता की आवश्यकता
उन्होंने यह भी कहा, "किसी भी सिख को अपने धार्मिक कर्तव्यों का पालन करने के कारण अपमान या बहिष्करण का सामना नहीं करना चाहिए। हमें संविधान में निहित समानता और न्याय के मूल्यों का सम्मान करना चाहिए।" यह पहली बार नहीं, सिख छात्रों के साथ भेदभाव की घटनाएं पहले भी सामने आ चुकी हैं, जो धार्मिक स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं।