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वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता की ओर भारत का मजबूत कदम: जानें नई रिसर्च, डेवलपमेंट पॉलिसी से क्या बदल जाएगा

30 जुलाई, 2025 04:53 PM

रिसर्च, डेवलपमेंट एंड इनोवेशन (RDI) योजना 2025 को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने के साथ ही देश तकनीकी आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा की दिशा में ऐतिहासिक कदम बढ़ा रहा है। यह योजना 1 लाख करोड़ रुपए की अनुमानित लागत के साथ अगले 50 वर्षों में भारत को केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि वैश्विक नवाचारकर्ता बनाने की महत्वाकांक्षा को मूर्त रूप देती है। योजना का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश में दीर्घकालिक, उच्च जोखिम वाले और अत्याधुनिक तकनीकी क्षेत्रों में निजी निवेश को प्रेरणा मिले और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप स्वदेशी नवाचार को जमीन पर उतारा जा सके।

भारत में आज तक अनुसंधान और नवाचार का अधिकांश भार सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों और विश्वविद्यालयों पर रहा है। देश का कुल अनुसंधान व्यय (GERD) आज भी सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.6% से 0.7% है, जो समय की मांग के हिसाब से कम है। सरकार की यह नई योजना इस असंतुलन को दूर करने का प्रयास है, ताकि निजी पूंजी को अनुसंधान के क्षेत्र में खींचा जा सके और तकनीक आधारित अर्थव्यवस्था की नींव को मज़बूती मिले।

प्रधानमंत्री खुद करेंगे निगरानी

RDI योजना की संरचना बहुस्तरीय है। इसे अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान (ANRF) के माध्यम से कार्यान्वित किया जाएगा, जिसकी सर्वोच्च नीति निर्धारण समिति की अध्यक्षता स्वयं प्रधानमंत्री करेंगे। इसके अधीन एक कार्यकारी परिषद गठित की जाएगी, जो विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर योजना के दिशा-निर्देश तैयार करेगी, वित्तीय अनुमोदन देगी और परियोजनाओं की निगरानी सुनिश्चित करेगी। इसके अलावा, कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में सचिवों का एक समूह योजना की निगरानी और प्रगति का आकलन करेगा। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग को योजना के समन्वय और नीतिगत क्रियान्वयन का प्रमुख प्रभार सौंपा गया है।

50 वर्षों के लिए बिना ब्याज के मिलेगा ऋण

RDI योजना के अंतर्गत निधि दो चरणों में वितरित की जाएगी। पहले चरण में ANRF को केंद्र सरकार से 50 वर्षों के लिए बिना ब्याज का ऋण मिलेगा। दूसरे चरण में यह निधि एक विशेष प्रयोजन कोष (Special Purpose Fund) के रूप में विभिन्न वैकल्पिक निवेश कोषों (Alternative Investment Funds), विकास वित्त संस्थाओं (DFIs), गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) और अन्य निवेश माध्यमों को दी जाएगी, जो आगे परियोजनाओं में निवेश करेंगे। इसके साथ ही एक ‘डीप-टेक फंड-ऑफ-फंड्स’ भी गठित किया जाएगा, जो जोखिमयुक्त लेकिन उच्च संभावनाशील तकनीकी स्टार्टअप्स को वित्तीय सहायता प्रदान करेगा।

यह योजना प्राथमिकता आधारित क्षेत्रों पर केंद्रित है, जिनमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग, जैव प्रौद्योगिकी, स्वच्छ ऊर्जा, अर्धचालक फार्मास्युटिकल्स, अंतरिक्ष विज्ञान और जलवायु परिवर्तन से जुड़े समाधान प्रमुख हैं। इन क्षेत्रों में न केवल भारत की रणनीतिक स्वायत्तता से जुड़ी संभावनाएं छिपी हैं, बल्कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे निकलने का भी अवसर है।

नवाचार नीति में क्रांतिकारी बदलाव

यह योजना भारत की नवाचार नीति में कई स्तरों पर क्रांतिकारी बदलाव लेकर आई है। जहां पहले सरकार का ध्यान केवल बुनियादी शोध पर केंद्रित था, अब अनुसंधान को व्यावसायिक सफलता और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के साथ जोड़ा जा रहा है। यह परिवर्तन भारत को एक नवाचार-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने वाला निर्णायक क्षण हो सकता है। इसके अलावा, यह योजना आत्मनिर्भर भारत अभियान, डिजिटल इंडिया, अटल इनोवेशन मिशन और डिजिटल साइंस पार्क जैसी पहलों के साथ भी जुड़ती है, जो समेकित रूप से भारत को तकनीकी महाशक्ति बनाने की दिशा में अग्रसर हैं।

रिसर्च के लिए जरूरी ‘रिस्क कैपिटल’ का अभाव होगा दूर

योजना का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि यह देश में अनुसंधान के लिए आवश्यक ‘रिस्क कैपिटल’ (Risk Capital) के अभाव को दूर करने का प्रयास कर रही है। अब तक उच्च जोखिम वाले नवाचार और तकनीकी खोजों को पूंजी नहीं मिलती थी, जिसके कारण वे विचार प्रारंभिक स्तर पर ही दम तोड़ देते थे। RDI योजना न केवल इन स्टार्टअप्स और प्रयोगों को जीवन देने का काम करेगी, बल्कि उन्हें वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार भी करेगी।

दूसरी ओर, योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए सरकार अनुसंधान-समर्थक पारिस्थितिकी तंत्र भी समानांतर रूप से विकसित करे की कोशिश कर रही है। इसमें उच्च गुणवत्ता वाली प्रयोगशालाएं, अनुभवी वैज्ञानिकों की उपलब्धता, विश्वविद्यालयों और उद्योगों के बीच सहयोग, नवाचारों के पेटेंट और व्यावसायीकरण की प्रणाली और बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा जैसे पहलू अहम होंगे।

तकनीकी निर्भरता से मिलेगी मुक्ति

इससे पहले भी कई बार नवाचार आधारित विकास की बातें हुईं, लेकिन संसाधनों की कमी और नियामकीय जटिलताओं के कारण परिणाम अपेक्षा से कम रहे। इस बार सरकार ने दीर्घकालिक ऋण और कम ब्याज वाले निवेश के माध्यम से जोखिम उठाने का साहस दिखाया है। इससे यह संकेत मिलता है कि भारत नवाचार को केवल शोध का विषय नहीं, बल्कि आर्थिक और रणनीतिक नीति का केंद्रीय स्तंभ मानने लगा है।

यह योजना भारत को तकनीकी निर्भरता से मुक्त कर आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने वाली ऐतिहासिक पहल सिद्ध हो सकती है। यह योजना सिर्फ एक वित्तीय घोषणा नहीं है, बल्कि भारत के नवाचार युग का आरंभ है, जो देश को ‘विकसित भारत 2047’ की ओर सशक्त क़दमों से ले जाने का माध्यम बन सकती है।

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