दक्षिण एशिया में हथियारों की होड़ एक नए दौर में प्रवेश कर चुकी है। तुर्की अब सिर्फ पाकिस्तान को ड्रोन बेचने तक सीमित नहीं है, बल्कि उसने पाकिस्तान में ही एक ड्रोन असेंबली और निर्माण सुविधा स्थापित करने की तैयारी शुरू कर दी है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब भारत-पाकिस्तान के बीच मई में हुआ संघर्ष विराम टूटने के बाद दोनों देशों के संबंध और भी तनावपूर्ण बने हुए हैं। इस फैसले का प्रभाव सीधे भारत की सुरक्षा पर पड़ सकता है।
तुर्की की यह सुविधा पाकिस्तान में स्टील्थ तकनीक वाले, लंबी दूरी तक उड़ान भरने वाले कॉम्बैट UAV तैयार करेगी। यानी अब आधुनिक युद्धक ड्रोन पाकिस्तान में ही जमीन पर बनाए जाएंगे, वह भी भारत की सीमा से ज्यादा दूर नहीं। इससे पाकिस्तान को ऐसी तकनीक मिल जाएगी, जिसे अब तक अमेरिका या पश्चिमी देशों के नियंत्रण और अनुमति के बिना हासिल करना मुश्किल था।
तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन पिछले कुछ वर्षों में तेजी से अपना रक्षा नेटवर्क विस्तार कर रहे हैं। उनके नेतृत्व में तुर्की के रक्षा निर्यात 30 प्रतिशत बढ़कर 7.5 अरब डॉलर तक पहुंच चुके हैं। एर्दोआन अब मुस्लिम देशों और गैर-पश्चिमी राष्ट्रों के बीच ऐसा रक्षा आपूर्ति तंत्र बना रहे हैं, जो पूरी तरह पश्चिमी हथियार कंपनियों और उनके राजनीतिक दबाव से मुक्त हो।
इस साझेदारी से पाकिस्तान को न सिर्फ उन्नत तकनीक वाले "Bayraktar स्तर" के ड्रोन मिलेंगे, बल्कि उन्हें बनाने की क्षमता भी मिलेगी। पाकिस्तान को इससे ऐसी रक्षा दावेदारी हासिल होगी, जो उसे पश्चिमी देशों के किसी निरीक्षण, मंजूरी या प्रतिबंध के दबाव से बाहर रखेगी। वहीं तुर्की को एक नया रणनीतिक फायदा मिलेगा। वह पाकिस्तान को दक्षिण एशिया में अपना उत्पादन केंद्र बनाकर लगभग 3 ट्रिलियन डॉलर के क्षेत्रीय हथियार बाजार में प्रवेश कर सकेगा।
यह पूरा घटनाक्रम भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय बन सकता है। पाकिस्तान अपनी ड्रोन क्षमता को तेजी से बढ़ाएगा और भारत इस तकनीक पर कोई सीधा प्रतिबंध या रोक नहीं लगा सकता। इससे सीमा सुरक्षा और भारत की मौजूदा काउंटर-ड्रोन रणनीति पर पुनर्विचार की जरूरत पड़ेगी। विशेषज्ञों की मानें तो भारत अब अपने स्वदेशी ड्रोन्स के विकास में तेजी लाएगा, साथ ही अमेरिका और इज़राइल के साथ रक्षा साझेदारी को भी और मजबूत करेगा।
इस बीच, चीन भी इस नए समीकरण से असहज है। पाकिस्तान लंबे समय से चीन के हथियारों पर निर्भर रहा है, लेकिन तुर्की की इस एंट्री से बीजिंग के पारंपरिक बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी। तुर्की पहले ही इंडोनेशिया को लड़ाकू विमान बेच चुका है और सऊदी अरब से लेकर सीरिया तक कई देश तुर्की के हथियारों की लाइन में खड़े हैं। अब पाकिस्तान तुर्की की दक्षिण एशिया रणनीति का प्रमुख केंद्र बन सकता है, जो आगे चलकर अफगानिस्तान, मध्य एशियाई देशों और संभवतः ईरान को भी ड्रोन सप्लाई कर सकता है।
कुल मिलाकर, पाकिस्तान ने तुर्की की मदद से अपनी ड्रोन कमजोरी को दूर कर लिया है। भारत के लिए यह एक नई सुरक्षा चुनौती है, क्योंकि दक्षिण एशिया में अब एक मल्टीपोलर (बहुध्रुवीय) हथियारों की दौड़ शुरू हो चुकी है—जहां न कोई पश्चिमी बिचौलिया है और न कोई राजनीतिक शर्त। यह बदलाव आने वाले वर्षों में क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे को पूरी तरह बदल सकता है।