मुंबई। विक्रांत मैसी की रोमांटिक ड्रामा फिल्म ‘आंखों की गुस्ताखियां’ शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म में शनाया कपूर ने डेब्यू किया है। हालांकि चर्चा के बावजूद ये फिल्म रिलीज के पहले ही दिन ठंडी साबित हुई है। यहां तक कि 12वीं फेल एक्टर विक्रांत मैसी भी इस फिल्म को नहीं बचा पाए। यह फिल्म रस्किन बॉन्ड की प्रसिद्ध कहानी ‘द आईज हैव इट’ पर आधारित है। फिल्म से उम्मीद थी कि यह एक खूबसूरत, भावनात्मक और रुहानी प्रेम कहानी साबित होगी। लेकिन अफसोस, यह उस गहराई और एहसास को पर्दे पर नहीं उतार पाए। फिल्म ने ओपनिंग डे पर काफी निराशाजनक प्रदर्शन किया है। फिल्म पहले दिन 50 लाख का कलेक्शन भी नहीं कर पाई।
क्या है फिल्म की कहानी?
फिल्म की कहानी की शुरुआत एक ट्रेन से होती है, जिसमें दो अजनबी मुसाफिर जहान (विक्रांत मैसी) और सबा शेरगिल (शनाया कपूर) एक-दूसरे से टकराते हैं। सबा ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध रखी है। वह थिएटर आर्टिस्ट है। असल में उसे बॉलीवुड की एक बड़ी फिल्म में अंधी लड़की के रोल का ऑडिशन देना है और आंखों पर पट्टी बांधना रोल की तैयारी का हिस्सा है। मगर गीतकार और सिंगर जहान वाकई इस दुनिया को देखने से महरूम है। दृष्टिहीन जहान और चुलबुली सबा के बीच ट्रेन का यह सफर पहले दोस्ती और फिर देहरादून पहुंचने के बाद प्यार में बदल जाता है।
लाख चाहते हुए भी जहान, सबा को अपने दृष्टिहीन होने की बात नहीं बता पाता। मगर कुछ नजदीकी पलों में दोनों एक हो जाते हैं। तय करते हैं कि वैलेंटाइंस डे के दिन सबा अपनी आंखों की पट्टी उतारकर जहान को देखेगी। इससे पहले कि वह जहान को देख पाती, जहान अपनी असलियत बताए बगैर उसे छोड़कर चला जाता है। वक्त गुजरने के साथ सबा के टूटे दिल पर मरहम रखता है अभिनव (जैन खान दुर्रानी), जिससे सबा की शादी होने वाली है। लेकिन तभी एक बार फिर जहान सबा से टकराता है। पर इस बार कबीर बनकर। क्या सबा, जहान को पहचान पाएगी? क्या जहान अपना सच सबा को बता पाएगा? इस प्रेम त्रिकोण का क्या अंजाम होगा? इन सवालों का जवाब आपको फिल्म देखने पर ही मिलेगा।
रोमांस दिखाने में मेकर्स से हुई गलतियां
मानसी बागला की लिखी कहानी शुरुआत में सबा और जहान के बीच नोकझोंक, एकदूसरे के करीब आना उम्मीद बांधती है। नेत्रहीनों को दया नहीं सम्मान देने का मुद्दा भी उठाया है, लेकिन यह कहानी विश्वसनीय नहीं बन पाई है। इस प्रेम को दर्शाने में ढेरों गुस्ताखियां भी हुई हैं। जैसे इतने दिनों तक जहान के साथ रहने के बावजूद सबा को एक बार भी यह अहसास क्यों नहीं होता कि जहान नेत्रहीन है? यह समझ से परे है। सीढ़ी से गिरने के बाद सबा और जहान का एक-दूसरे को यूं चुंबन देना और प्यार होना पचता नहीं है। जहान के जाने के बाद उसकी खोज न कर पाना भी अजीबोगरीब है, जबकि वह गीतकार और गायक है। स्मार्ट फोन रखने वाली लड़की होटल में सीसीटीवी कैमरा देखने की जहमत नहीं उठाती। बेहद आत्मविश्वासी और अभिनेत्री बनने को आतुर सबा बिना देखे दिल दे बैठती है यह समझना भी आसान नहीं।
इंटरवल के बाद मेकर्स के हाथ से फिसली कहानी
इसी तरह विक्रांत के पात्र को दिखाते समय लेखक और निर्देशक संतोष सिंह ने काफी सिनेमाई लिबर्टी ली है। होटल से निकलते समय विक्रांत बिना छड़ी के आम इंसान की तरह जा रहा है। उसकी जिंदगी में कोई समस्या कभी नहीं दिखी। सबा छड़ी लेकर डांस कर रही, लेकिन उसकी वजह से अनजान हैं। इंटरवल के बाद तो कहानी पूरी तरह फिसलती है। मानसी बागला, संतोष सिंह और निरंजन अययर द्वारा लिखा स्क्रीन प्ले और डायलॉग अपनी लय खोते दिखते हैं।
अलगाव के तीन साल बाद कहानी यूरोप आती है। वहां पर जहान और सबा का पहले एकदूसरे को न पहचानना, फिर करीब आना और दबी भावनाओं का जगना जैसे पूर्वानुमानित प्रसंग कहानी को दिलचस्प बनाने में असफल रहते हैं। कहानी अगर यूरोप के बजाए देश के किसी हिस्से में सेट होती तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। सबसे बड़ी कमजोरी शनाया और विक्रांत की केमिस्ट्री दिलचस्प न बन पाना भी है। संवाद भी प्रभावी नहीं बन पाए हैं।