देश की 10 बड़ी ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने 9 जुलाई को भारत बंद का ऐलान किया है। इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल में 25 करोड़ से ज्यादा कर्मचारी शामिल हो सकते हैं, जो बैंक, बीमा, पोस्ट ऑफिस, कोयला खनन, राज्य परिवहन और निर्माण उद्योग जैसे कई क्षेत्रों से होंगे। यह हड़ताल केंद्र सरकार की श्रम-विरोधी नीतियों और कॉरपोरेट समर्थक सुधारों के खिलाफ की जा रही है।
क्यों हो रहा है भारत बंद?
ट्रेड यूनियनों का आरोप है कि केंद्र सरकार ने उनकी 17 सूत्री मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया है और पिछले साल इन मांगों को श्रम मंत्री मनसुख मांडविया को ज्ञापन के रूप में सौंपा गया था, लेकिन सरकार ने इन पर गंभीर चर्चा नहीं की। इसके अलावा, पिछले 10 सालों में सरकार ने राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन नहीं बुलाया है, जिससे मज़दूरों के हितों की अनदेखी हो रही है। यूनियनों का कहना है कि हाल ही में लागू किए गए चार लेबर कोड केवल कंपनियों को फायदा पहुंचाने और यूनियनों की ताकत को कम करने के लिए हैं। वे इसे कामकाजी घंटों में बढ़ोतरी और सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार को खत्म करने की कोशिश मानते हैं।
9 जुलाई को क्या खुलेगा और क्या बंद रहेगा?
इस देशव्यापी हड़ताल के कारण कुछ महत्वपूर्ण सेवाओं पर असर पड़ सकता है:
1. बैंकिंग सेवाएं: सरकारी और कोऑपरेटिव बैंकों में कामकाज रुक सकता है। AIBEA, AIBOA, BEFI जैसी यूनियनें इस हड़ताल में शामिल हैं।
2. बीमा सेवाएं: बीमा कंपनियों, जैसे LIC और GIC, में भी काम ठप हो सकता है।
3. पोस्टल सेवाएं: पोस्ट ऑफिस में कर्मचारी हड़ताल पर होंगे, जिससे डाक सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं।
4. कोयला खदान और फैक्ट्रियां: कोयला खदानों और बड़ी फैक्ट्रियों में भी काम ठप हो सकता है।
5. राज्य परिवहन: राज्य परिवहन सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं, खासकर जहां मज़दूर यूनियनें मजबूत हैं।
हालांकि, स्कूल और कॉलेज खुले रहेंगे क्योंकि सरकार ने इन्हें बंद करने का आदेश नहीं दिया है। प्राइवेट दफ्तरों और इमरजेंसी सेवाओं पर असर कम होगा, लेकिन पब्लिक ट्रांसपोर्ट में परेशानी हो सकती है। अस्पताल भी खुले रहेंगे, हालांकि कुछ जगहों पर सपोर्ट स्टाफ हड़ताल में शामिल हो सकता है, जिससे थोड़ी दिक्कत हो सकती है।
बेरोज़गारी, महंगाई और सरकारी नीतियों पर नाराजगी
यूनियनों ने यह भी आरोप लगाया है कि मौजूदा आर्थिक नीतियों के चलते देश में बेरोज़गारी बढ़ रही है, जरूरी चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं, और सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य और नागरिक सुविधाओं पर खर्च कम कर रही है।
निजीकरण और ठेका व्यवस्था का विरोध
यूनियनों ने सरकारी संस्थानों और सेवाओं के निजीकरण के खिलाफ भी आवाज़ उठाई है। उनका कहना है कि ठेका और अस्थायी मज़दूरी को बढ़ावा देने से मज़दूरों के अधिकार छीने जा रहे हैं। संसद से पास हुए चार लेबर कोड को वे ट्रेड यूनियन आंदोलन को कुचलने और काम के घंटों को बढ़ाने की कोशिश मानते हैं।
MGNREGA और रोजगार की मांग
संयुक्त मंच ने सरकार से मांग की है कि मनरेगा (MGNREGA) में काम के दिन और मज़दूरी बढ़ाई जाए, और शहरों के लिए भी ऐसा ही रोजगार गारंटी कानून बनाया जाए, जैसे ग्रामीण क्षेत्रों के लिए है। उनका आरोप है कि सरकार इसके बजाय कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए Employment Linked Incentive (ELI) स्कीम चला रही है।
बैंक यूनियनें भी 9 जुलाई को हड़ताल में शामिल होंगी
ऑल इंडिया बैंक इम्प्लॉइज एसोसिएशन (AIBEA) और बंगाल प्रांतीय बैंक कर्मचारी एसोसिएशन ने पुष्टि की है कि वे इस हड़ताल में शामिल होंगे। उनका कहना है कि वे केंद्र सरकार की 'कॉरपोरेट परस्ती' के खिलाफ यह विरोध कर रहे हैं।