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फीचर

रहस्यों के स्वामी हैं पुरी के जगन्नाथ, जानिये आश्चर्य से भरी कथा

01 जुलाई, 2025 01:39 PM

कहते हैं हरि अनंत हरि कथा अनंता, कलियुग के भगवान कहे जाने वाले जगन्नाथ जी की भी कई अनोखी कहानियाँ हैं जो रहस्यों से भरी हैं। हर साल आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि, यानी जगन्नाथ पुरी में भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है, जहां भगवान जगन्नाथ अपने भाई बहन के साथ मौसी के घर यानी पुरी के गुंडीचा मंदिर में जाते हैं, और 9 दिन के बाद वहां से लौटते हैं।

जगन्नाथ जी की रथयात्रा और मंदिर से जुड़ी हैं अनेकों कथाएं जिनमें कुछ में रहस्य है तो कुछ में आश्चर्य।

जगन्नाथ जी क्यों पड़ते हैं बीमार ?

कोविड के दौरान लोगों ने सीखा कि बीमारी में 14 दिन का एकांत वास आवश्यक है, लेकिन जगन्नाथ जी के मंदिर में वर्षों से ये नियम चला आ रहा है जहां जगन्नाथ जी हर साल बीमार पड़ते हैं और वे 15 दिन एकांतवास करते हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान ठंडे पानी से स्नान करते हैं, जिसके बाद उनकी तबीयत ख़राब हो जाती है।

ब्रह्म पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार, राजा इंद्रद्युम्न ने पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की काष्ठ प्रतिमाएँ स्थापित की थीं, जब ये प्रतिमाएँ तैयार हुईं, तो राजा ने विद्वान ब्राह्मणों और संतों से प्रतिष्ठापना विधि पूछी। ब्राह्मणों ने ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन प्रभु को पवित्र स्नान कराने की सलाह दी, तभी से हर साल मंदिर में इस दिन स्नान पूर्णिमा मनाया जाती है।

सबसे पहले कौन रथ यात्रा में निकलता है ?

जगन्नाथ जी का रथ जब तैयार हो जाता है तो सबसे पहले सुदर्शन चक्र बाहर आकर सुरक्षा का जायज़ा लेते हैं, फिर लौटकर प्रभु को बताये हैं कि सब ठीक है तब एक-एक कर जगन्नाथ जी, बलभद्र और सुभद्रा जी निकलते हैं। सबसे आगे बलराम का रथ रहता है फिर सुभद्रा जी का और अंत में जगन्नाथ जी का रथ चलता है। बहन सुभद्रा के रथ को आगे और पीछे से दोनों भाई सुरक्षा देते हैं और बीच में उनकी सुरक्षा के लिए सुदर्शन चक्र उनके रथ पर विराजमान होते हैं।

क्यों होती हैं लक्ष्मी जी नाराज़ ?

जगन्नाथ जी अपने भाई और बहन के साथ गुंडीचा मंदिर चले जाते हैं और लक्ष्मी जी को साथ नहीं ले जाते इसके चलते लक्ष्मी जी प्रभु से नाराज़ हो जाती हैं।

कौन तोड़ जाता है जगन्नाथ जी के रथ का पहिया ?

इसी नाराज़गी में रथयात्रा के दौरान लक्ष्मी जी गुंडीचा मंदिर पहुंचती हैं जहां पर जगन्नाथ जी से अपना नाराज़गी व्यक्त करती हैं और रथ का एक पहिया भी तोड़ जाती हैं।

प्रभु कैसे मनाते हैं पत्नी को ?

भगवान जगन्नाथ जब रथयात्रा के बाद वापस लौटते हैं तो नाराज़ लक्ष्मी जी के लिए साड़ी और रसगुल्ले ले जाते हैं। पहले ये सामान अंदर भेजते हैं फिर लक्ष्मी जी अंदर आने की अनुमति देती हैं फिर प्रभु मंदिर में प्रवेश करते हैं, लेकिन मंदिर में प्रवेश करते ही दोनों एक दूसरे पर रसगुल्ले फेंकते हैं।

मंदिर में ध्वज और नील चक्र का रहस्य

अद्भुत बात है कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर ध्वज हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। यहां ध्वज प्रति दिन बदला जाता है क्योंकि मान्यता है कि अगर एक भी दिन पताका बदली नहीं गयी तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद करना पड़ेगा। पुजारी रोज़ मंदिर की दीवार पर चढ़कर पताका फहराते हैं। मंदिर के शिख़र पर ही स्थित है नील चक्र या सुदर्शन चक्र जिससे भी एक अनोखा रहस्य जुड़ा है। शहर के किसी भी दिशा से आप मंदिर की तरफ़ देखें तो आपको नील चक्र अपनी ओर मुंह किये हुए ही नज़र आयेगा।

क्या है ? मंदिर की रसोई का रहस्य

जगन्नाथ मंदिर में हर रोज़ प्रभु को भोग लगाने के लिए अनेकों पकवान बनते हैं, पुरी जगन्नाथ मंदिर की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोइयों में से एक है, जहां रोज़ लाखों लोग भोजन करते हैं और कभी किसी के लिए भोग कम नहीं पड़ता। अनोखी बात ये है कि यहां सात मिट्टी के बर्तनों में एक के ऊपर एक रखकर खाना पकाया जाता है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि सबसे ऊपर रखा हुआ बर्तन सबसे पहले पकता है, फिर उसके नीचे वाले, और अंत में सबसे नीचे रखा बर्तन पकता है।

लहरों की आवाज़ मंदिर के भीतर क्यों सुनायी नहीं देतीं ?

जगन्नाथ महाप्रभु के अनेकों रहस्यों में ये एक अनोखा रहस्य है जहां मंदिर के द्वार के बाहर तो समुद्र की आवाज़ आती है लेकिन मंदिर की दहलीज़ को पार करते ही ये आवाज़ बंद हो जाती है।

चार द्वारों का अर्थ ?

सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर एवं कलियुग का प्रतिनिधित्व करते हैं जगन्नाथ मंदिर के चारों द्वार। पहला द्वार पूर्व की तरफ़ है जिसे सिंह द्वार यानी प्रमुख द्वार कहते हैं। जगन्नाथ मंदिर का सिंह द्वार मोक्ष का प्रतीक माना जाता है। इसी सिंह द्वार के सामने ही अरुण स्तंभ स्थित है।

दूसरा द्वार दक्षिण दिशा की ओर है जिसे अश्व(घोड़ा) द्वार कहते हैं, इसे विजय द्वार भी कहते हैं क्योंकि प्राचीन समय में योद्धा इसी द्वार से अपने अश्व पर सवार होकर आते थे और युद्ध में विजय की कामना करते थे।

तीसरे द्वार पश्चिम दिशा में स्थित है और इसका नाम है हस्ति(हाथी) द्वार, इसे समृद्धि की प्रतीक माना जाता है। इस द्वार पर भगवान गणेश विराजमान हैं।

चौथा द्वार उत्तर में स्थित है जिसे व्याघ्र (बाघ) द्वार कहा जाता है। भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को समर्पित ये द्वार धर्म का प्रतीक माना जाता है।

तीसरी सीढ़ी, यम की सीढ़ी, उसपर न रखें पैर

पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में कुल 22 सीढ़ियां हैं, जिन्हें ‘बैसी पहाचा’भी कहा जाता है। माना जाता है कि ये सीढ़ियां मानव जीवन की बाईस कमजोरियों या बुराइयों का प्रतीक हैं, जिन पर विजय प्राप्त करके ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन इन सीढ़ियों में नीचे से तीसरी सीढ़ी सबसे अलग है। बाकी सीढ़ियों से इस सीढ़ी का रंग अलग है। जगन्नाथ जी की अनेक अनोखी मान्यताओं में से एक मान्यता ये है कि इस सीढ़ी में यम का वास है, यानी मृत्यु के देवता यमराज इस सीढ़ी में बसते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार यमराज ने भगवान जगन्नाथ से शिकायत की कि आपके दर्शन से भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, और उन्हें मोक्ष मिल जाता है, इसलिए यमलोक खाली है।

इस पर भगवान जगन्नाथ ने यमराज से हंसकर कहा ठीक है तुम मंदिर की तीसरी सीढ़ी पर अपना वास बनाओ, और अब से जो भी भक्त मेरे दर्शन के बाद इस सीढ़ी पर पैर रखेंगे उनके पाप भले ही नष्ट हो गए हों लेकिन वे यमलोक भी अवश्य जायेंगे। यही सीढ़ी यमशिला के नाम से जानी जाती है, इस सीढ़ी की पहचान हो सके इसके लिए इस सीढ़ी को काले रंग से रंगा गया है।इसलिए मान्यता है कि जगन्नाथ जी के दर्शन के बाद भक्तों को तीसरी सीढ़ी पर पैर नहीं रखना चाहिए।

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