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धर्म

साल में एक बार खुलता है महाकाल के मंदिर के ऊपर बना ये मंदिर, सर्प दोष के जातकों को दर्शन देने आते हैं ‘नागचंद्रेश्वर’

29 जुलाई, 2025 01:46 PM

देशभर के करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक महाकाल नगरी उज्जैन में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर के कपाट सोमवार रात ठीक 12 बजे श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे। यह मंदिर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की तीसरी मंजिल पर स्थित है और खास बात यह है कि इसके पट पूरे वर्ष में केवल एक दिन, नागपंचमी के शुभ अवसर पर ही खोले जाते हैं। मंदिर के खुलने के साथ ही 24 घंटे तक श्रद्धालु यहां दर्शन कर सकेंगे।

हिंदू धर्म में नागों की पूजा का विशेष महत्व है। इन्हें भगवान शिव का आभूषण और उनका रक्षक माना जाता है। नागचंद्रेश्वर मंदिर भी इसी परंपरा का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि यहां दर्शन मात्र से नागदोष, कालसर्प दोष और अन्य बाधाएं दूर हो जाती हैं। महाकाल मंदिर के गर्भगृह के ऊपर ओंकारेश्वर मंदिर और सबसे ऊपर नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है, जिसे देखने का दुर्लभ अवसर केवल नागपंचमी पर ही मिलता है।

मंदिर में स्थित प्रतिमा अद्वितीय है, जिसे नेपाल से लाया गया था। इसमें भगवान शिव शेषनाग की शैय्या पर विराजमान हैं और उनके साथ माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी, सिंह, सूर्य और चंद्रमा की सुंदर मूर्तियां भी स्थापित हैं। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर माना जाता है, जहां भोलेनाथ इस रूप में विराजते हैं।

मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में परमार वंश के राजा भोज द्वारा करवाया गया था। बाद में 1732 में मराठा सरदार राणोजी सिंधिया ने इसका पुनर्निर्माण कराया। नागचंद्रेश्वर की मूर्ति भी तभी नेपाल से मंगाकर तीसरी मंजिल पर स्थापित की गई थी।

धार्मिक कथा के अनुसार, नागराज तक्षक ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया। इसके बाद तक्षक देव ने शिवजी के साथ ही रहना शुरू किया, लेकिन शिवजी को यह प्रिय नहीं था, क्योंकि वह एकांत और ध्यान के प्रेमी थे। तक्षक ने शिव की भावना को समझा और तभी से तय किया कि वह साल में सिर्फ एक बार नागपंचमी के दिन ही उनके दर्शन करने आएंगे। इसी परंपरा के कारण मंदिर के कपाट केवल इसी दिन खोले जाते हैं।

प्रशासन की ओर से अनुमान है कि इस एक दिन में करीब 10 लाख श्रद्धालु नागचंद्रेश्वर मंदिर के दर्शन करेंगे। हर श्रद्धालु को लगभग 40 मिनट के भीतर दर्शन कराने की योजना बनाई गई है। दर्शन व्यवस्था को सुचारू रखने के लिए विशेष सुरक्षा और मार्गदर्शन की व्यवस्था की गई है।

 

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