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कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए त्रिपुरा सरकार ने राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण ब्यूरो से किए एमओयू पर हस्ताक्षर

18 दिसंबर, 2025 05:33 PM

कृषि उत्पादकता बढ़ाने और खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए त्रिपुरा कृषि विभाग ने नागपुर स्थित राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग योजना ब्यूरो (एनबीएसएस एंड एलयूपी) के साथ बुधवार को एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए।

त्रिपुरा के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री रतन लाल नाथ ने कहा कि इस सहयोग का उद्देश्य राज्य के कई जिलों में कृषि योग्य भूमि पर गहन वैज्ञानिक शोध करना है, जिससे टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा मिलेगा और त्रिपुरा का कृषि भविष्य मजबूत होगा। यह एमओयू अगरतला के प्रज्ञा भवन में आयोजित “भू-स्थानिक तकनीकों के माध्यम से त्रिपुरा की भूमि संसाधन सूची” विषयक कार्यशाला के उद्घाटन के दौरान किया गया। इस अवसर पर मंत्री ने कहा, “हम कृषि में आत्मनिर्भरता की बात तो करते हैं, लेकिन इसके लिए भूमि पर वैज्ञानिक शोध बेहद जरूरी है।”

उन्होंने कहा कि कृषि में भूमि सबसे अहम कारक है, इसके बाद बीज की गुणवत्ता, जल उपलब्धता और वैज्ञानिक खेती पद्धतियों का स्थान आता है। नाथ ने बताया कि तीन वर्ष पहले कृषि विभाग ने मिट्टी की विभिन्न परतों की स्थिति का आकलन करने की प्रक्रिया शुरू की थी। इसके तहत पहले दक्षिण त्रिपुरा और गोमती जिलों को सर्वे के लिए चुना गया। एनबीएसएस एंड एलयूपी के मृदा वैज्ञानिकों ने इन जिलों का सर्वे कर रिपोर्ट सौंपी, जिसके बाद अध्ययन को और आगे बढ़ाने के लिए एमओयू किया गया।

एमओयू के तहत अब उत्तर त्रिपुरा, धलाई और उनाकोटी जिलों में भी मृदा सर्वेक्षण किया जाएगा। मंत्री ने बताया कि बुधवार को एनबीएसएस एंड एलयूपी के वैज्ञानिकों ने अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किए, जबकि पश्चिम त्रिपुरा, सिपाहीजाला और खोवाई जिलों में सर्वे अभी किया जाना बाकी है। एनबीएसएस एंड एलयूपी, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की एक इकाई है।

मंत्री ने कहा कि पहले इस तरह की वैज्ञानिक योजना का अभाव था। उन्होंने कहा, “मैं 30 वर्षों से राजनीति में हूं। पहले भी त्रिपुरा को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाने की बातें होती थीं, लेकिन कोई ठोस योजना नहीं थी। अब मृदा वैज्ञानिक हमें यह बता सकते हैं कि किस क्षेत्र में किस प्रकार की मिट्टी है और कहां पाम ऑयल, रबर, मोटे अनाज और धान जैसी फसलें बेहतर ढंग से उगाई जा सकती हैं।”

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि पहले पश्चिम त्रिपुरा के नागीछेरा बागवानी अनुसंधान केंद्र में पाम ऑयल के पौधे लगाए गए थे, लेकिन वैज्ञानिक आकलन के अभाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिली। नाथ ने कहा कि एमओयू के बाद कृषि विभाग मृदा वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एक व्यापक योजना तैयार करेगा ताकि किसान स्थानीय मिट्टी के अनुरूप फसल चक्र अपना सकें। उन्होंने कहा, “हम आने वाले दिनों में 100 प्रतिशत सफलता का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं।”

उन्होंने बताया कि 2018 में भाजपा सरकार के सत्ता में आने से पहले राज्य के 22 विकासखंड खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर थे। अब यह संख्या बढ़कर 30 हो गई है और इस वर्ष पांच और विकासखंड आत्मनिर्भर होने की उम्मीद है। भविष्य में त्रिपुरा के और कृषि उत्पादों को जीआई टैग भी मिलेगा। इस कार्यक्रम में कृषि विभाग के सचिव अपूर्व रॉय, निदेशक फणी भूषण जमातिया, राज्य नोडल अधिकारी उत्तम साहा सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। 

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