केदारनाथ आपदा की दर्दनाक यादें बीते 12 सालों के बाद भी उतनी ही ताजा हैं जितनी उस दिन थीं, जब भयानक बाढ़ और भूस्खलन ने वहां कहर बरपाया था। चारों तरफ पानी, मलबा और इंसानी जानों के अवशेषों का मंजर आज भी लोगों के जेहन में बसा हुआ है। इस विनाशकारी घटना में हजारों लोग लापता हो गए, जिनका अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है। उनकी तलाश के लिए परिवार अब भी आस लगाए बैठे हैं, ताकि उनके अपनों का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार किया जा सके।
केदारनाथ त्रासदी में कुल 3075 लोग लापता हुए, जिनकी खोज के लिए अब एक बार फिर प्रयास शुरू होने जा रहे हैं। उत्तराखंड हाईकोर्ट में इस संबंध में याचिका दायर की गई थी, जिसमें राज्य सरकार से लापता व्यक्तियों के कंकालों की खोज कर उनके सम्मानजनक अंतिम संस्कार की मांग की गई। इस दिशा में सरकार ने अब तक चार बार खोजी टीम भेजी है।
साल 2020 में चट्टी और गोमुखी क्षेत्रों में करीब 703 नर कंकाल बरामद किए गए थे। इसके अलावा साल 2014 में 21 और 2016 में 9 कंकाल मिले थे। नवम्बर 2024 में भी कुल 10 खोजी टीमें अलग-अलग पैदल मार्गों पर खोज में लगी थीं, लेकिन कोई नई सफलता नहीं मिली। जो कंकाल मिलते हैं, उनका डीएनए परीक्षण कर परिवारों की पहचान की जाती है और फिर उन्हें शव सौंपा जाता है।
हालांकि, अभी तक केदारनाथ आपदा में मारे गए 702 लोगों की पहचान नहीं हो सकी है। इन मृतकों के डीएनए सैंपल पुलिस के पास उपलब्ध हैं, लेकिन जिन 6000 से अधिक लोगों ने अपनी डीएनए जानकारी दी थी, उनके साथ मेल नहीं होने के कारण उनकी शिनाख्त संभव नहीं हो पाई है।
उत्तराखंड सरकार इस साल फिर से सर्च टीम भेजने की तैयारी कर रही है। आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि हाईकोर्ट ने 2016 और 2019 में स्पष्ट निर्देश दिए थे कि लापता 3075 लोगों की खोज जारी रखी जाए और उनका अंतिम संस्कार सुनिश्चित किया जाए।
इस आपदा ने जहां हजारों परिवारों के जीवन को तबाह किया, वहीं आज भी उनके अपनों को खोया हुआ पाने की उम्मीद जिंदा है। केदारनाथ त्रासदी के मृतकों को सम्मान देने के लिए यह खोजी अभियान न केवल परिवारों के लिए, बल्कि पूरे प्रदेश के लिए एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण पहल है।