केंद्र सरकार ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम, 2025 के संवर्धन और विनियमन को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को विभिन्न उच्च न्यायालयों से शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया ताकि परस्पर विरोधी फैसलों से बचा जा सके। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कर्नाटक, दिल्ली और मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालयों में लंबित तीन मामलों को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की याचिका अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की है।
केंद्र सरकार के वकील ने कहा, ‘‘भारत सरकार ने स्थानांतरण याचिका दायर की है। ऑनलाइन गेमिंग विनियमन अधिनियम को तीन उच्च न्यायालयों में चुनौती दी गई है। चूंकि यह कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष अंतरिम आदेशों के लिए सूचीबद्ध है, इसलिए क्या इसे सोमवार को सूचीबद्ध किया जा सकता है?'' याचिकाओं के स्थानांतरण की मांग के अलावा, केंद्र ने स्थानांतरण याचिका के निपटारे तक विभिन्न उच्च न्यायालयों में “रिट याचिकाओं पर सभी कार्यवाही पर रोक लगाने” का अनुरोध किया। याचिका में कहा गया है, "विभिन्न उच्च न्यायालयों में एक ही प्रकार के अनेक मुकदमे लंबित होने के कारण यह आवश्यक है कि इन्हें इस न्यायालय या किसी अन्य उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया जाए, ताकि विचारों में किसी भी प्रकार की भिन्नता या विभिन्न न्यायालयों में सुनवाई से बचा जा सके।”
याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद अधिनियम की वैधता को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालयों में कई याचिकाएं दायर की गईं। ऑनलाइन गेमिंग संवर्धन एवं विनियमन अधिनियम, 2025 पहला केंद्रीय कानून है, जिसके तहत धन से जुड़े ऑनलाइन गेमिंग पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है। यह कानून ऑनलाइन पैसे वाले खेलों को खेलने पर प्रतिबंध लगाता है और उल्लंघनों को संज्ञेय व गैर-जमानती अपराधों के रूप में वर्गीकृत करता है। यह विधेयक 20 अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया और दो दिन में संसद के दोनों सदनों में ध्वनिमत से पारित हो गया। इसे 22 अगस्त को राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिल गई और अब यह कानून बन गया है। इस कानून को मध्य प्रदेश, कर्नाटक और दिल्ली के उच्च न्यायालयों में चुनौती दी गई है।