भारत ग्रीन फ्यूचर की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। 100 गीगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य पार करने के बाद, देश 2030 तक 500 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा और 2070 तक नेट-ज़ीरो ऊर्जा तक पहुंचने की राह पर है। बड़े सौर पार्क, रूफटॉप सोलर और प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ़्त बिजली योजना जैसी परियोजनाएं घरों को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनने में मदद कर रही हैं।
आज देश इतिहास रचने की ओर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है
सिर्फ़ एक दशक पहले, भारत का सौर ऊर्जा परिदृश्य अपनी प्रारंभिक अवस्था में था, जहां सोलर पैनल केवल कुछ छतों और रेगिस्तानों में ही दिखते थे। आज, देश इतिहास रचने की ओर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। भारत आधिकारिक तौर पर जापान को पीछे छोड़कर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सौर ऊर्जा उत्पादक देश बन गया है। अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (आईआरईएनए) के अनुसार, भारत ने 1,08,494 गीगावाट घंटा सौर ऊर्जा उत्पादन किया और जापान (96,459 गीगावाट घंटा) से आगे निकल गया।
भारत की संचयी सौर ऊर्जा क्षमता जुलाई 2025 तक 119.02 गीगावाट थी। इसमें जमीन पर स्थापित सौर संयंत्रों से 90.99 गीगावाट, ग्रिड से जुड़े रूफटॉप सिस्टम से 19.88 गीगावाट, हाइब्रिड परियोजनाओं से 3.06 गीगावाट और ऑफग्रिड सौर प्रतिष्ठानों से 5.09 गीगावाट शामिल है, जो नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार के लिए देश के विविध दृष्टिकोण को दर्शाता है।
भारत की सौर क्षमता में रिकॉर्ड वृद्धि
दरअसल, भारत उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में स्थित है, जहां कर्क रेखा कई राज्यों से होकर गुजरती है। इससे देश में सौर ऊर्जा उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। भारतीय महाद्वीप की कुल सौर ऊर्जा क्षमता 748 गीगावाट है। राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में देश की सबसे अधिक सौर ऊर्जा क्षमता है, जो उन्हें भारत के स्वच्छ ऊर्जा विकास के प्रमुख चालक बनाती है।
देश की कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 227 गीगावाट तक पहुंच गई
भारत की सौर ऊर्जा क्षमता जुलाई 2025 तक 4,000 प्रतिशत बढ़ गई थी और देश की कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 227 गीगावाट तक पहुंच गई थी। जम्मू-कश्मीर का पल्ली गांव एक उल्लेखनीय उदाहरण बन गया, जो पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर चलने के कारण भारत की पहली कार्बन-न्यूट्रल पंचायत के रूप में उभरा। भविष्य की ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए ऊर्जा भंडारण और नई तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
घरेलू सौर विनिर्माण को बढ़ावा
भारत के सौर विनिर्माण क्षेत्र में सोलर मॉड्यूल, सोलर पीवी सेल और सिल्लियां एवं वेफ़र जैसे प्रमुख घटक शामिल हैं। देश में इनका उत्पादन घरेलू अर्थव्यवस्था को सहारा देता है और आयात पर निर्भरता कम करता है। केवल एक वर्ष में, सोलर मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता लगभग दोगुनी हो गई। मार्च 2024 में जहां यह क्षमता 38 गीगावाट थी, मार्च 2025 में बढ़कर 74 गीगावाट हो गई है। इसी प्रकार, सोलर पीवी सेल विनिर्माण 9 गीगावाट से बढ़कर 25 गीगावाट हो गया।
सरकार ने देश भर में सौर ऊर्जा को अपनाने और विकास को बढ़ावा देने के लिए कई प्रमुख पहल शुरू की हैं। जो इस प्रकार हैं-
पीएम सूर्य घर- मुफ्त बिजली योजना-प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ़्त बिजली योजना 75,021 करोड़ रुपए की एक केंद्रीय योजना है, जिसका उद्देश्य एक करोड़ भारतीय परिवारों को छत पर सौर पैनल लगाकर हर महीने 300 यूनिट तक मुफ़्त बिजली प्रदान करना है। सरकार 1 किलोवाट के लिए 30,000 रुपए, 2 किलोवाट के लिए 60,000 रुपए और 3 किलोवाट या उससे अधिक क्षमता वाले रूफटॉप सोलर सिस्टम के लिए 78,000 रुपए की सब्सिडी प्रदान करती है। अगर कोई परिवार इस सिस्टम को लगवाने के लिए लोन भी लेता है, तो भी वह मासिक लोन ईएमआई चुकाने के बाद हर साल बिजली के बिलों पर लगभग 15,000 रुपए की बचत कर सकता है।
पीएम-कुसुम (प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान)-पीएम-कुसुम योजना किसानों को डीज़ल के बजाय सौर ऊर्जा का उपयोग करने में सहायता करती है। किसान नए सौर पंप लगाने या पुराने पंपों को सौर ऊर्जा में बदलने के लिए 30 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी प्राप्त कर सकते हैं। वे अपनी ज़मीन पर 2 मेगावाट तक के सौर ऊर्जा संयंत्र भी लगा सकते हैं और स्थानीय डिस्कॉम को बिजली बेचकर पैसा कमा सकते हैं। यह योजना राज्य कार्यान्वयन एजेंसियों द्वारा संचालित की जाती है।
सौर पार्क योजना-सरकार बिजली ग्रिड से जुड़े बड़े सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना के लिए ‘सोलर पार्कों और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं का विकास’ नामक एक योजना चला रही है जिसका लक्ष्य मार्च 2026 तक 40 गीगावाट बिजली उत्पादन करना है। अब तक 13 राज्यों में लगभग 39,323 मेगावाट की कुल क्षमता वाले 53 सोलर पार्क स्वीकृत किए जा चुके हैं।
पीएम जनमन- सौर विद्युतीकरण के माध्यम से पीवीटीजी समुदायों को सशक्त बनाना- प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महाअभियान (पीएम जनमन) को विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) की विकास आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 9 मंत्रालयों के माध्यम से 11 महत्वपूर्ण हस्तक्षेपों के माध्यम से शुरू किया गया था। इस मिशन और धरती आबा जनजाति ग्राम उत्कर्ष अभियान (डीए जेजीयूए) के तहत एक प्रमुख पहल नई सौर ऊर्जा योजना है जिसका उद्देश्य 18 राज्यों में आदिवासी और पीवीटीजी बस्तियों में एक लाख गैर-विद्युतीकृत घरों का विद्युतीकरण करना है जो दूरदराज के जनजातीय क्षेत्रों में समावेशी विकास और टिकाऊ ऊर्जा पहुंच को बढ़ावा देता है।
सोलर पीवी विनिर्माण क्षमता में वृद्धि- गौरतलब हो, वर्ष 2014 के बाद भारत की सोलर पीवी सेल बनाने की क्षमता लगभग 21 गुना बढ़ गई है। 2014 में 1.2 गीगावाट से बढ़कर मार्च 2025 तक यह लगभग 25 गीगावाट हो गई है। इसी प्रकार, सौर पीवी मॉड्यूल बनाने की क्षमता 34 गुना से अधिक बढ़ गई है, जो 2014 में 2.3 गीगावाट से बढ़कर मार्च 2025 तक लगभग 78 गीगावाट हो गई है।
अन्य महत्वपूर्ण पहल
फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट्स –मध्य प्रदेश स्थित ओंकारेश्वर फ्लोटिंग सोलर पार्क, एशिया के सबसे बड़े फ्लोटिंग सोलर पार्कों में से एक है जिसकी नियोजित क्षमता 600 मेगावाट है। इसकी लागत 330 करोड़ रुपए है जिसमें केंद्र सरकार 49.85 करोड़ रुपए का सहयोग प्रदान करेगी। ये सौर परियोजनाएं भूमि को बचाने और अधिक कुशलता से कार्य करने के लिए जलाशयों पर स्थापित की जाती हैं।
एग्रीवोल्टाइक्स- एग्रीवोल्टाइक्स सोलर पैनलों का उपयोग करते हैं और उनके नीचे खेती की अनुमति देते हैं जिससे भूमि उपयोग और किसानों की आय में वृद्धि होती है। दिल्ली में सनमास्टर प्लांट और जोधपुर में आईसीएआर द्वारा स्थापित 105 किलोवाट की प्रणाली जैसी परियोजनाएं स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की प्रगति को दर्शाती हैं।
भारत का वैश्विक सौर नेतृत्व: आईएसए और ओएसओडब्ल्यूओजी
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए)- वर्ष 2015 में सीओपी21 में भारत और फ्रांस द्वारा शुरू किया गया अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, सौर ऊर्जा के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्यरत 100 से अधिक देशों का एक वैश्विक गठबंधन है। इसका लक्ष्य 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर का निवेश जुटाना, प्रौद्योगिकी और वित्तपोषण लागत को कम करना और किफायती सौर समाधानों को बढ़ावा देना है।
एक सूर्य-एक विश्व-एक ग्रिड (ओएसओडबल्यूजी)- वर्ष 2018 में आईएसए असेंबली में भारत द्वारा शुरू की गई ‘एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड’ (ओएसओडब्ल्यूओजी) पहल, इस विचार के तहत एक वैश्विक सौर ग्रिड की कल्पना करती है कि ‘सूर्य कभी अस्त नहीं होता।’ आईएसए के नेतृत्व में, इसका उद्देश्य दक्षिण एशिया से लेकर अफ्रीका और यूरोप तक के क्षेत्रों में सौर संसाधनों को जोड़ना है जिसके लिए अध्ययन और रूपरेखाएं पहले से ही चल रही हैं।
भारत का नवीकरणीय क्षेत्र: एक अवलोकन
भारत का ऊर्जा क्षेत्र, बिजली उत्पादन के लिए कई अलग-अलग स्रोतों का उपयोग करता है। इनमें कोयला, गैस, लिग्नाइट, डीज़ल जैसे जीवाश्म ईंधन के साथ-साथ सौर, पवन, जलविद्युत, परमाणु और बायोमास जैसे गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोत भी शामिल हैं। भारत की कुल बिजली क्षमता अब लगभग 485 गीगावाट तक पहुंच गई है। इसमें से 242 गीगावाट तापीय ऊर्जा, 116 गीगावाट सौर ऊर्जा और 51.6 गीगावाट पवन ऊर्जा से आती है। यह स्वच्छ ऊर्जा और बेहतर ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में भारत के मजबूत कदम को दर्शाता है।
दरअसल, पिछले 11 वर्षों में, भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। सीओपी26 में निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने के लिए, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता तक पहुंचने के लिए कार्य कर रहा है।
भारत की नवीकरणीय ऊर्जा वृद्धि, वर्ष 2014 से 2025
भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल विद्युत और जैव ऊर्जा शामिल हैं, जो जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और सतत विकास को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता मार्च 2014 में 76.37 गीगावाट से बढ़कर जून 2025 में 233.99 गीगावाट हो गई है। यह लगभग तीन गुना वृद्धि को दर्शाता है।
पवन ऊर्जा-भारत ने वित्त वर्ष 2024-25 में 4.15 गीगावाट पवन ऊर्जा जोड़ी। इसके साथ ही कुल स्थापित क्षमता बढ़कर 51.6 गीगावाट हो गई। भारत, स्थापित 52.14 गीगावाट (31 जुलाई 2025 तक) के साथ तटीय पवन ऊर्जा में विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है और 30.10 गीगावाट कार्यान्वयन के अधीन है। वहीं, 23 अप्रैल 2024 से मार्च 2025 तक पवन ऊर्जा से 83.35 अरब यूनिट बिजली का उत्पादन हुआ जो कुल बिजली उत्पादन का 4.56 प्रतिशत है। देश में पवन ऊर्जा क्षमता 1164 गीगावाट और वार्षिक विनिर्माण क्षमता 18 गीगावाट है।
जैव ऊर्जा-देश में 11.60 गीगावाट जैव ऊर्जा क्षमता (ऑफ-ग्रिड और अपशिष्ट-से-ऊर्जा से 0.55 गीगावाट सहित) और लघु जलविद्युत से 5.10 गीगावाट क्षमता है जिसमें 0.46 गीगावाट निर्माणाधीन है।25 इसके समर्थन के लिए, राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम (2021-2026) को 1715 करोड़ रुपए के बजट के साथ शुरू किया गया, जिसमें निम्नलिखित घटकों के तहत देश भर में जैव ऊर्जा परियोजनाओं की स्थापना के लिए केंद्रीय वित्तीय सहायता की पेशकश की गई।
जैव ईंधन (इथेनॉल) सम्मिश्रण-भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा इथेनॉल उत्पादक और उपभोक्ता है। पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण जून 2022 के 10 प्रतिशत से बढ़कर फरवरी 2025 तक 17.98 प्रतिशत हो गया। सरकार का लक्ष्य, पहले के 2030 के तय सीमा से पहले 2025-26 तक 20 प्रतिशत मिश्रण प्राप्त करना है।
पनबिजली ऊर्जा- भारत में 25 मेगावाट तक की जलविद्युत परियोजनाओं को लघु जलविद्युत परियोजनाएं कहा जाता है। 7,133 स्थलों से देश की 21.1 गीगावाट की क्षमता है। इनमें से अधिकांश पहाड़ी राज्यों में हैं।29 भारत में पहले से ही 5.11 गीगावाट क्षमता स्थापित है और अधिक क्षमता का विकास किया जा रहा है। बड़ी जलविद्युत और पंप भंडारण परियोजनाएं भी बढ़ रही हैं जिनमें 133.4 गीगावाट जलविद्युत और 181.4 गीगावाट पंप भंडारण क्षमता है।30 सरकार टैरिफ सहायता और ट्रांसमिशन शुल्क माफी जैसे लाभों के साथ इन्हें मदद पहुंचाती है।
ग्रीन हाइड्रोजन-सौर या पवन ऊर्जा का उपयोग करके पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करके ग्रीन हाइड्रोजन बनाया जाता है। यह इस्पात और परिवहन जैसे उद्योगों में जीवाश्म ईंधन की जगह लेगा और दीर्घकालिक स्वच्छ ऊर्जा भंडारण प्रदान करेगा। ग्रीन हाइड्रोजन की मांग तेज़ी से बढ़ रही है क्योंकि यह परिवहन, जहाजरानी और इस्पात उत्पादन जैसे कई क्षेत्रों में उत्सर्जन और प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकता है। यह वाहनों में पेट्रोल और डीजल की जगह ले सकता है, जो हानिकारक उत्सर्जन के बड़े कारण हैं।
नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन-भारत सरकार ने कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने और भारत को ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में वैश्विक अग्रणी बनाने के लिए शुरू किया था। 2030 तक, इसका लक्ष्य हर साल 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना है जिससे 8 लाख करोड़ रूपए का निवेश आएगा, 6 लाख रोज़गार सृजित होंगे और जीवाश्म ईंधन के आयात में 1 लाख करोड़ रूपए की बचत होगी।
हालिया नीतिगत निर्णय
इसके अतिरिक्त, केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने 16 जुलाई, 2025 को 2030 तक भारत के 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म क्षमता लक्ष्य की प्रतिबद्धता को दोहराया। कैबिनेट ने एनएलसी इंडिया लिमिटेड को अपनी नवीकरणीय शाखा, एनएलसी इंडिया रिन्यूएबल्स लिमिटेड (एनआईआरएल) को मज़बूत करने के लिए 7,000 करोड़ रूपए की छूट को मंज़ूरी दे दी।
उल्लेखनीय है, स्वच्छ ऊर्जा की ओर भारत का तेज़ी से बढ़ता रुख़, पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में भारत को समय से पहले ही आगे ले जा रहा है। गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता के विकास में तेज़ी लाकर, भारत ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ा रहा है, कोयले के आयात को कम कर रहा है, रोज़गार सृजन कर रहा है और विश्वसनीय बिजली आपूर्ति को मज़बूत कर रहा है।
वहीं, देश की स्थापित बिजली क्षमता का 50 प्रतिशत अब गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से आता है, जो पेरिस समझौते के लक्ष्य से पांच साल पहले ही हासिल हो गया है। यह दर्शाता है कि विकास और स्थिरता साथ-साथ चल सकते हैं।