दरअसल, सोहारी पत्ता, जिसे वैज्ञानिक रूप से कैलाथिया ल्यूटिया (बिजाओ या सिगार प्लांट) के नाम से जाना जाता है, एक उष्णकटिबंधीय पौधा है, जो अदरक के परिवार से संबंधित है। यह कैरिबियन, मध्य और दक्षिण अमेरिका में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसकी चौड़ी, मोमी और मजबूत पत्तियां, जो एक मीटर से अधिक लंबी हो सकती हैं, भोजन परोसने के लिए प्लेट के रूप में उपयुक्त हैं। त्रिनिदाद की गर्म और आर्द्र जलवायु में ये पत्तियां चावल, करी, चना और मिठाइयों जैसे गर्म व्यंजनों को बिना टूटे या लीक हुए सहेज सकती हैं।
भोजपुरी जड़ें और सांस्कृतिक महत्व
सोहारी’ शब्द भोजपुरी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है “देवताओं के लिए भोजन।” मूल रूप से यह शब्द घी से सनी चपटी रोटी (रोटी) को संदर्भित करता था, जिसे हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों में पुजारियों को चढ़ाया जाता था। समय के साथ, इस भोजन को परोसने के लिए इस्तेमाल होने वाले पत्ते को भी ‘सोहारी पत्ता’ कहा जाने लगा। त्रिनिदाद और टोबैगो में यह परंपरा धार्मिक समारोहों, शादियों, सामुदायिक भोज और दिवाली जैसे त्योहारों में आज भी जीवित है।
भारत और कैरिबियन का सांस्कृतिक पुलसोहारी पत्ते पर भोजन परोसना केवल एक व्यावहारिक विकल्प नहीं, बल्कि इंडो-त्रिनिदादियों के लिए उनके भारतीय मूल की एक जीवंत याद है। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा, “यह पत्ता सिर्फ एक प्लेट नहीं, बल्कि दो संस्कृतियों को जोड़ने वाला एक सेतु है।” यह परंपरा भारतीय भोजन की प्रथाओं का सम्मान करती है और साथ ही कैरिबियन की अनूठी पहचान को दर्शाती है, जिसे वहां के भारतीय समुदाय ने प्यार से संरक्षित किया है।
सोहारी पत्ते के बारे में त्वरित तथ्य
अर्थ: भोजपुरी में ‘सोहारी’ का अर्थ है “देवताओं के लिए भोजन।”
उपयोग: इंडो-त्रिनिदादियन समुदाय पिछले 100 से अधिक वर्षों से धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में इसका उपयोग करता आ रहा है।
पौधा: कैलाथिया ल्यूटिया, जिसे बिजाओ के नाम से भी जाना जाता है, कैरिबियन का मूल निवासी है।
विशेषता: इसकी मजबूत, चौड़ी पत्तियां गर्म व्यंजनों को परोसने के लिए उपयुक्त हैं।
क्यों है यह महत्वपूर्ण?
सोहारी का पत्ता केवल एक प्राकृतिक प्लेट नहीं है, बल्कि यह त्रिनिदाद और टोबैगो में बसे भारतीय समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह उन गिरमिटिया मजदूरों की कहानी कहता है, जिन्होंने 19वीं सदी में भारत से कैरिबियन की यात्रा की और अपनी परंपराओं को जीवित रखा। पीएम मोदी का इस पत्ते पर भोजन करना और इसकी प्रशंसा करना भारत और त्रिनिदाद के बीच गहरे सांस्कृतिक और भावनात्मक रिश्तों को रेखांकित करता है। यह एक ऐसी कहानी है, जो हर भारतीय को अपनी जड़ों पर गर्व करने के लिए प्रेरित करती है।