देश में हाल ही में एक बड़ी चर्चा छिड़ गई है, जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बीजेपी को चेतावनी दी कि वे एटम बम से भी ज्यादा शक्तिशाली हाइड्रोजन बम फोड़ने वाले हैं। इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मच गया है और कई सवाल उठने लगे हैं कि हाइड्रोजन बम और एटम बम में असल में क्या फर्क है और कौन ज्यादा खतरनाक है। आइए इस खबर में विस्तार से समझते हैं कि ये दोनों बम कैसे काम करते हैं, उनकी ताकत कितनी होती है और उनके इस्तेमाल के इतिहास क्या हैं।
एटम बम क्या है?
एटम बम, जिसे परमाणु बम भी कहा जाता है, एक ऐसा हथियार है जो भारी परमाणु पदार्थ जैसे यूरेनियम या प्लूटोनियम के विखंडन (फिसलने) से ऊर्जा उत्पन्न करता है। इस प्रक्रिया में बड़े परमाणु छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाते हैं और इसी दौरान बहुत भारी मात्रा में ऊर्जा और तापमान पैदा होता है। इसका पहला इस्तेमाल द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर किया था। इन हमलों में करीब 2 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे और इसके कारण जापान ने युद्ध में आत्मसमर्पण कर दिया था। एटम बम की ताकत तबाही मचाने में असाधारण होती है, लेकिन यह हाइड्रोजन बम की तुलना में कम शक्तिशाली है।
हाइड्रोजन बम क्या है?
हाइड्रोजन बम को थर्मोन्यूक्लियर बम भी कहा जाता है। यह एटम बम से कहीं अधिक शक्तिशाली होता है। हाइड्रोजन बम में दो प्रक्रियाएं मिलकर काम करती हैं: विखंडन और संलयन। इसमें पहले एक एटम बम की तरह विखंडन होता है, जो हाइड्रोजन के आइसोटोप — ड्यूटेरियम और ट्रिटियम — को संलयन के लिए प्रज्वलित करता है। संलयन के दौरान ये हल्के परमाणु मिलकर भारी परमाणु बनाते हैं और साथ ही बहुत बड़ी मात्रा में ऊर्जा मुक्त करते हैं। यही कारण है कि हाइड्रोजन बम की ताकत परमाणु बम से हजार गुना ज्यादा हो सकती है।
दोनों बमों में क्या अंतर है?
एटम बम और हाइड्रोजन बम में सबसे बड़ा फर्क उनकी ऊर्जा उत्पन्न करने की प्रक्रिया में होता है। एटम बम में बड़े परमाणु टूटते हैं, जिसे विखंडन कहते हैं, जिससे बहुत ज़्यादा ऊर्जा निकलती है। वहीं, हाइड्रोजन बम में सिर्फ विखंडन नहीं बल्कि संलयन भी होता है, जिसमें हल्के परमाणु मिलकर और भी बड़ी ताकत वाला विस्फोट करते हैं। इसलिए हाइड्रोजन बम, एटम बम से लगभग 1000 गुना ज़्यादा शक्तिशाली होता है। जहां एटम बम में यूरेनियम या प्लूटोनियम जैसे भारी पदार्थ होते हैं, वहीं हाइड्रोजन बम में इसके साथ-साथ ड्यूटेरियम और ट्रिटियम जैसे हाइड्रोजन के आइसोटोप भी शामिल होते हैं। हाइड्रोजन बम की विनाश क्षमता इतनी ज्यादा होती है कि यह पूरे शहर को तबाह कर सकता है, इसलिए इसे "सिटी किलर" यानी शहर नष्ट करने वाला बम भी कहा जाता है।
राजनीतिक बयान और विवाद का पूरा मामला
राहुल गांधी ने कहा कि बीजेपी जल्द ही एटम बम से भी बड़ा हाइड्रोजन बम फोड़ने वाली है। उनका यह बयान चुनावों के दौरान बीजेपी को चेतावनी के तौर पर देखा गया। बीजेपी ने इसे राजनीति से संबंधित बयान करार दिया और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राहुल गांधी से पूछा कि ऐसे गंभीर हथियारों की बात चुनाव में क्यों लानी चाहिए। उन्होंने कहा कि विपक्ष के नेता को मर्यादा का पालन करना चाहिए।
क्या हाइड्रोजन बम का कभी इस्तेमाल हुआ है?
इतिहास में कोई देश युद्ध में हाइड्रोजन बम का इस्तेमाल नहीं करता है। यह हथियार इतना विनाशकारी है कि इसे केवल परीक्षण के लिए ही विकसित किया गया है। अमेरिका ने 1954 में एक हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया था, जिसने उसकी भयावह शक्ति को साबित किया था। इसके बाद भी दुनिया ने इस हथियार के उपयोग से बचना बेहतर समझा है।