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राष्ट्रीय

भारत बनेगा समंदर का राजा! सरकार का ₹1.30 लाख करोड़ का मास्टर प्लान

07 जुलाई, 2025 07:39 PM

भारत दुनिया का एक बड़ा आयातक है, लेकिन अब देश निर्यातक बनने की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है। इस लक्ष्य को पाने के लिए समुद्री व्यापार में मजबूत पकड़ बनाना बेहद जरूरी है, और इसके लिए भारत को बड़ी संख्या में नए जहाजों की आवश्यकता है। इसी को देखते हुए, भारत सरकार ने घरेलू जहाज निर्माण को बढ़ावा देने के लिए एक नई और महत्वाकांक्षी योजना पर काम शुरू कर दिया है।

क्यों पड़ी नए प्लान की जरूरत?
मौजूदा योजना, जिसका उद्देश्य भारतीय जहाजों को बढ़ावा देना था, अपने लक्ष्यों को पूरा करने में असफल रही है। इस असफलता के कारण भारत को समुद्री व्यापार में एक प्रमुख खिलाड़ी बनने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। इसी चुनौती से निपटने के लिए, सरकार की विभिन्न मंत्रालयों के बीच एक महत्वपूर्ण चर्चा हुई है, जिसमें 200 नए जहाजों की खरीद की मांग सामने आई है। इन जहाजों की कुल अनुमानित लागत ₹1.30 लाख करोड़ है। पेट्रोलियम, स्टील और उर्वरक मंत्रालयों की ओर से इन जहाजों की सबसे ज्यादा मांग है, क्योंकि इन क्षेत्रों में आयात और निर्यात के लिए बड़े पैमाने पर समुद्री परिवहन की आवश्यकता होती है।

200 नए जहाजों की खरीद का पूरा प्लान
पोर्ट्स, शिपिंग और जलमार्ग मंत्रालय ने एक रिपोर्ट में बताया है कि शिपिंग मंत्रालय, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, इस्पात और उर्वरक मंत्रालयों के साथ मिलकर काम कर रहा है. इसका उद्देश्य भारतीय ध्वज वाले जहाजों पर कम आयात के मुद्दे को हल करना है। मंत्रालय ने जानकारी दी कि इस पहल के परिणामस्वरूप लगभग 1.3 लाख करोड़ रुपये की लागत से 8.6 मिलियन ग्रॉस टन (GT) के लगभग 200 जहाजों की मांग पैदा हुई है. ये सभी जहाज सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (PSU) के संयुक्त स्वामित्व में होंगे और अगले कुछ वर्षों में भारतीय शिपयार्ड में ही बनाए जाएंगे। यह कदम न केवल भारत की समुद्री क्षमताओं को बढ़ाएगा, बल्कि घरेलू जहाज निर्माण उद्योग को भी बढ़ावा देगा।

केंद्र सरकार का यह नया प्रयास इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय ध्वज वाले जहाजों को बढ़ावा देने वाली मौजूदा ₹1,624 करोड़ की योजना अपने लक्ष्य से चूक सकती है। समुद्री व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि आयात में भारतीय ध्वज वाले जहाजों द्वारा ढोए जाने वाले माल की हिस्सेदारी अभी भी लगभग 8% है, और 2021 में योजना शुरू होने के बाद से इसमें कोई खास बदलाव नहीं आया है।

मौजूदा योजना क्यों हुई फ्लॉप?
एक वरिष्ठ अधिकारी ने मीडिया को बताया कि मौजूदा योजना की समीक्षा होने की उम्मीद है, लेकिन अब तक केवल ₹330 करोड़ का ही वितरण हो पाया है, और भारतीय ध्वज वाले जहाजों की बाजार हिस्सेदारी अभी भी बहुत कम बनी हुई है। इस योजना की घोषणा वित्त वर्ष 2022 के बजट में की गई थी और इसे जुलाई 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी थी।

हालांकि, देश के निर्यात-आयात व्यापार में भारतीय जहाजों की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2019 में 1987-88 के 40.7% से गिरकर लगभग 7.8% हो गई है। आधिकारिक अनुमानों के अनुसार, इससे विदेशी शिपिंग लाइनों को सालाना लगभग 70 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा खर्च होता है। भारतीय बंदरगाहों ने 2023-24 में लगभग 1540.34 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) कार्गो का संचालन किया, जो एक साल पहले की तुलना में 7.5% अधिक है, लेकिन इसमें भारतीय जहाजों की हिस्सेदारी कम रही।

सामने हैं ये बड़ी चुनौतियां
इस महत्वाकांक्षी योजना को साकार करने में कुछ चुनौतियां भी हैं:
परिचालन लागत : आधिकारिक अनुमानों के अनुसार, भारतीय ध्वज वाले जहाज अनिवार्य रूप से भारतीय नाविकों को काम पर रखते हैं और घरेलू कराधान तथा कॉर्पोरेट कानूनों का पालन करते हैं, जिससे उनकी परिचालन लागत में 20% का इजाफा होता है।
उच्च लागत और कम कार्यकाल: क्षेत्र पर नजर रखने वालों का कहना है कि परिचालन लागत में वृद्धि का एक प्रमुख कारण डेट फंड्स की उच्च लागत, कम ऋण कार्यकाल और भारतीय जहाजों पर काम करने वाले भारतीय नाविकों के वेतन पर कराधान है।
भेदभावपूर्ण जीएसटी: जहाजों का आयात करने वाली भारतीय कंपनियों पर एक एकीकृत जीएसटी, जीएसटी टैक्स क्रेडिट अवरुद्ध और दो भारतीय बंदरगाहों के बीच सेवाएं प्रदान करने वाले भारतीय जहाजों पर भेदभावपूर्ण जीएसटी भी लागू होता है। ये सभी शुल्क समान सेवाएं प्रदान करने वाले विदेशी जहाजों पर लागू नहीं होते हैं। घरेलू उद्योग इन शुल्कों और करों को कम करने के लिए लगातार पैरवी कर रहा है।

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