चण्डीगढ़ (प्रीत पट्टी) : जौहरी एसोसिएशन, चण्डीगढ़ द्वारा आयोजित नवरत्न लर्निंग प्रोग्राम 2025 देश का पहला ऐसा रत्न एवं आभूषण कार्यक्रम है, जो केवल चण्डीगढ़ या ट्राइसिटी तक सीमित न रहकर पूरे भारतवर्ष के लिए एक आदर्श मॉडल बन सकता है। ये कहना था चण्डीगढ़ के प्रशासक गुलाब चंद कटारिया का, जो इस द्वारा आयोजित नवरत्न लर्निंग प्रोग्राम के प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान करने हेतु एक समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित हुए थे। उन्होंने कहा कि भारत सदियों से रत्नों की भूमि रहा है तथा रत्न और आभूषण भारत की ऐतिहासिक और व्यापारिक शक्ति है। जौहरी एसोसिएशन, चण्डीगढ़ की ये पहल हमारे देश के रत्न और आभूषण उद्योग को नए आयामों पर ले जाएगी। उन्होंने इस शैक्षणिक पहल की सराहना करते हुए कहा कि जौहरी एसोसिएशन ने यह दिखा दिया है कि संगठित एवं गुणवत्तापूर्ण ज्ञान से उद्योग को नई दिशा दी जा सकती है।
जौहरी एसोसिएशन के अध्यक्ष हुकम चंद गोयल ने इस अवसर पर कहा कि विश्वभर में रत्न एवं आभूषणों के क्षेत्र में हमारी पहचान उत्कृष्ट कारीगरी, शुद्धताvऔर सांस्कृतिक वैभव से रही है। परंतु आज के समय में, जब वैश्विक बाजार अत्यंत प्रतिस्पर्धात्मक हो गया है. तो केवल पारंपरिक ज्ञान पर्याप्त नहीं है। अब आवश्यकता है तकनीकी ज्ञान, प्रमाणिकता और विश्वास निर्माण की और इसी आवश्यकता को समझते हुए, जौहरी एसोसिएशन, चण्डीगढ़ ने नवरत्न लर्निंग प्रोग्राम के रूप में एक अद्वितीय शैक्षणिक अभियान की शुरुआत की है। नवरत्न लर्निंग प्रोग्राम का आयोजन उन सभी इच्छुक प्रतिभागियों को शिक्षित करने के उद्देश्य से किया गया है, जो नौ मुख्य रत्नों के बारे में गहन और तकनीकी जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। यह कार्यक्रम इस सोच पर आधारित है कि अधिकतर जौहरी केवल एक ट्रेडर होते हैं जिन्हें खरीदना और बेचना आता है, लेकिन रत्नों की वैज्ञानिक जानकारी और उनकी सही पहचान का ज्ञान सीमित होता है।
संस्था के महासचिव नवीन रावत ने कहा कि इस लर्निंग प्रोग्राम के माध्यम से जौहरियों को यह सामर्थ्य मिलेगा कि वे अपने ग्राहकों को रत्नों के बारे में सटीक, प्रमाणिक और व्यावसायिक तरीके से जानकारी दे सकें। इससे न केवल बाजार में गलत जानकारी फैलने से रोका जा सकेगा, बल्कि जौहरी उद्योग को एक तकनीकी और प्रोफेशनल दिशा भी मिलेगी। यह कार्यक्रम रत्न व्यापार को केवल लाभ कमाने का माध्यम नहीं, बल्कि एक गुणवत्तापूर्ण सेवा और भरोसे के व्यवसाय के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
एसोसिएशन के संयुक्त सचिव राहुल सिंघल ने बताया कि यह कार्यक्रम प्रधानमंत्री द्वारा प्रारंभ की गई मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया पहल से प्रेरित है जिसके तहत भारत को एक कुशल, सक्षम और आत्मनिर्भर निर्माण और सेवा केंद्र के रूप में विकसित करना है। इस कार्यक्रम के तहत हमारे पारंपरिक जौहरियों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण और प्रमाणिक जानकारी से जोड़ने का प्रयास किया गया है, ताकि वे केवल व्यापारी न रहकर, शिक्षित, प्रमाणित और प्रोफेशनल जौहरी बन सकें।
संस्था के वित्त सचिव रेवंत सिंह ने इस अवसर पर बताया कि यह कार्यक्रम 16 जून से 21 जून तक आयोजित हुआ, जिसमें प्रतिदिन 3 घंटे का गहन प्रशिक्षण प्रदान किया गया। इस कार्यक्रम की एक अनोखी विशेषता यह रही कि इसमें भाग लेने वालों की आयु 9 वर्ष से लेकर 65 वर्ष तक रही। यानी एक ओर जिज्ञासु बच्चे और दूसरी ओर अनुभवी जौहरी, सभी ने ज्ञान प्राप्त करने की समान रुचि दिखाई।
इस कार्यक्रम के शैक्षणिक साझेदार इंडियन डायमंड इंस्टीट्यूट (आईडीआई ), सूरत और रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद रहे तथा रत्न एवं आभूषण विशेषज्ञ अनीमेश शर्मा और उनके सहयोगी श्री संजीव पारेख ने प्रतिभागियों को प्रभावशाली प्रशिक्षण दिया। उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागियों को नवरत्नों (नौ प्रमुख रत्नों) की पहचान, गुणवत्ता, व्यापारिक उपयोग और उपभोक्ताओं को सही मार्गदर्शन देने जैसे विषयों पर व्यावहारिक और तकनीकी जानकारी दी। इसका उद्देश्य जौहरियों को केवल विक्रेता नहीं, बल्कि जानकार सलाहकार के रूप में तैयार करना था।