पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को अपने कालीघाट स्थित आवास पर बूथ-स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) से व्यक्तिगत रूप से अपना गणना फॉर्म प्राप्त किया। यह घटना उस दिन हुई जब उन्होंने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ मंगलवार को एक विशाल विरोध मार्च का नेतृत्व किया था।
सुरक्षा जांच के बाद बीएलओ को मिली एंट्री
भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र के बूथ संख्या 77 के प्रभारी बीएलओ अमित कुमार रॉय सुबह करीब 10:30 बजे मुख्यमंत्री के आवास (30बी, हरीश चटर्जी स्ट्रीट) पर फॉर्म सौंपने पहुंचे। ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारियों ने उन्हें रोक लिया और उद्देश्य पूछा। रॉय ने अपना परिचय देते हुए बताया कि वे मतदाता को गणना फॉर्म दे रहे हैं।
चुनाव आयोग के नियमों का हवाला देते हुए रॉय ने फॉर्म बाहर सौंपने से इनकार कर दिया, क्योंकि दस्तावेज सीधे मतदाता को ही सौंपना अनिवार्य है। संक्षिप्त बहस के बाद वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने सुरक्षाकर्मियों से सलाह ली और रॉय को बैग व मोबाइल फोन बाहर छोड़कर अंदर जाने की अनुमति दी। ममता बनर्जी अपने कमरे से बाहर आईं और बीएलओ से फॉर्म स्वयं लिया। रॉय ने बताया कि फॉर्म भरने के बाद उनका कार्यालय सूचित कर सकता है। मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया कि फॉर्म तैयार होने पर आवश्यक कॉल की जाएगी।
मंगलवार को SIR के खिलाफ किया था विशाल विरोध मार्च
इससे एक दिन पहले मंगलवार को ममता बनर्जी ने कोलकाता में एसआईआर के खिलाफ बड़ा विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि "एक भी योग्य मतदाता का नाम सूची से हटाया गया" तो केंद्र की भाजपा सरकार का पतन तय है।
टीएमसी प्रमुख ने चुनाव आयोग पर भाजपा का राजनीतिक हथियार होने का आरोप लगाया और कहा कि पुनरीक्षण अभियान चुनिंदा व दुर्भावनापूर्ण है। उन्होंने सवाल उठाया कि पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु जैसे विपक्षी शासित राज्यों में एसआईआर क्यों चल रहा है, जबकि भाजपा शासित असम और त्रिपुरा में इसे नजरअंदाज किया जा रहा है, जहां अगले साल चुनाव होने हैं। ममता ने एसआईआर को विवादास्पद एनआरसी से जोड़ा और इसे वैध मतदाताओं को डराने व मताधिकार से वंचित करने की साजिश बताया।
एसआईआर क्या है?
एसआईआर में बीएलओ द्वारा मतदाता सूचियों का घर-घर सत्यापन किया जाता है, ताकि डुप्लिकेट, मृत, प्रवासी या अयोग्य नाम हटाए जा सकें। यह प्रक्रिया करीब दो दशकों में इतने बड़े पैमाने पर नहीं हुई है। विपक्षी दलों का आरोप है कि इसका दुरुपयोग हाशिए के मतदाताओं और विपक्ष समर्थकों के नाम काटने के लिए किया जा रहा है। बिहार में पहले चरण में कथित तौर पर 68 लाख से अधिक नाम हटाए जाने से विवाद खड़ा हो गया था।