उच्चतम न्यायालय ने प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई करते हुए अहम फैसला सुनाया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि गवर्नर द्वारा विधानसभा बिलों को मंजूरी देने के लिए कोई निश्चित समय सीमा तय नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कि “डीम्ड असेंट” (Deemed Assent) का सिद्धांत संविधान की भावना और शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत के खिलाफ है।
सुप्रीम कोर्ट का Live Updates:
➤ राज्यपाल और राष्ट्रपति को बिलों पर मंजूरी देने की समय-सीमा नहीं तय की जा सकती।
➤ गवर्नर के पास बिल रोकने या प्रक्रिया रोकने का अधिकार नहीं।
➤ मामला अनुच्छेद 143 और प्रेसिडेंशियल रिफरेंस से जुड़ा है।
गवर्नर का रोल और अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि चुनी हुई सरकार और उसकी कैबिनेट को मुख्य निर्णयकर्ता (ड्राइवर की सीट) होना चाहिए।
➤ इसमें गवर्नर का कोई औपचारिक रोल नहीं है, बल्कि उनका विशेष और संवैधानिक प्रभाव होता है।
➤ गवर्नर बिल को मंजूरी दे सकते हैं।
➤ गवर्नर बिल को विधानसभा में वापस भेज सकते हैं।
➤ जरूरत पड़ने पर बिल को राष्ट्रपति को भेज सकते हैं।
➤ न्यायालय ने यह साफ कर दिया कि गवर्नर बिल रोकने या प्रक्रिया को बाधित करने का अधिकार नहीं रखते। उनका काम संविधान के अनुसार उचित मार्गदर्शन करना और आवश्यक कार्रवाई करना है।
केस की पृष्ठभूमि
इस मामले में प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर भी शामिल थे। पीठ ने दलीलों को लगभग 10 दिन तक सुना और 11 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।