दुनिया भर में आत्महत्या के मामलों में लगातार वृद्धि देखी जा रही है, जिस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने गहरी चिंता जताई है। भारत में भी यह समस्या गंभीर रूप ले रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में देश में 1,70,924 आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए, जो 2021 के 1,64,033 मामलों से 4.2 प्रतिशत अधिक है। यह आंकड़ा 2020 की तुलना में और भी चिंताजनक है, जहां 2021 में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। इन बढ़ते मामलों के पीछे के कारणों को समझने के लिए अब वैज्ञानिक रिसर्च पर जोर दिया जा रहा है।
आत्महत्या के पीछे जैविक और मानसिक कारण
आत्महत्या को अक्सर आर्थिक दबाव, रिश्तों में खटास या नौकरी की समस्याओं से जोड़ा जाता है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे दिमाग में होने वाले जैविक और रासायनिक बदलाव भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन छिपे कारणों को उजागर करने के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), दिल्ली ने एक अनोखी पहल शुरू की है। संस्थान ने 'ब्रेन बायो बैंक' की स्थापना की है, जहां आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों के दिमाग के सैंपल संग्रहीत किए जाएंगे। अगले पांच वर्षों में इन सैंपल्स का गहन अध्ययन किया जाएगा।
ब्रेन बायो बैंक क्या है और कैसे काम करेगा?
ब्रेन बायो बैंक एक वैज्ञानिक सुविधा है, जहां आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों के दिमाग के नमूने सुरक्षित रूप से स्टोर किए जाते हैं। AIIMS के डॉक्टर और शोधकर्ता इन सैंपल्स की जांच करेंगे ताकि पता लगाया जा सके कि आत्महत्या के विचारों के पीछे दिमाग में क्या बदलाव होते हैं। बैंक में दिमाग के तीन प्रमुख हिस्सों - प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (PFC), हिप्पोकैंपस और एमिग्डला - के सैंपल रखे जाएंगे। ये हिस्से निर्णय लेने, भावनाओं और स्मृति से जुड़े होते हैं। अध्ययन से यह पता चलेगा कि आत्महत्या की प्रवृत्ति के पीछे कौन से जैविक और मानसिक कारक सक्रिय होते हैं।
AIIMS के फॉरेंसिक विभाग के डॉ. चितरंजन बेहारा ने बताया, "भारत में हर साल लगभग 1.7 लाख लोग आत्महत्या करते हैं, और इनमें से अधिकांश 20 से 40 वर्ष की आयु वर्ग के होते हैं। हम अक्सर इन मामलों को मानसिक तनाव या आर्थिक समस्याओं से जोड़ते हैं, लेकिन दिमाग में होने वाले रासायनिक असंतुलन और जैविक बदलाव इंसान को ऐसा कदम उठाने के लिए मजबूर कर देते हैं। ब्रेन बायो बैंक के माध्यम से इन कारणों को समझकर हम रोकथाम के उपाय विकसित कर सकेंगे।"
रिसर्च की जरूरत और संभावित फायदे
यह रिसर्च इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आत्महत्या के मामलों में वृद्धि चिंताजनक है। NCRB के आंकड़ों से पता चलता है कि 2017 में आत्महत्या दर 9.9 प्रति लाख थी, जो 2022 में बढ़कर 12.4 प्रति लाख हो गई है। इस अध्ययन से:
आत्महत्या के सही कारणों की पहचान हो सकेगी।
समय रहते इलाज, काउंसलिंग और थेरेपी प्रदान की जा सकेगी।
दवाओं और उपचार पद्धतियों को अधिक प्रभावी बनाया जा सकेगा।
भविष्य में हजारों जिंदगियां बचाई जा सकेंगी।
वैश्विक संदर्भ में भारत की स्थिति
WHO के अनुसार, वैश्विक स्तर पर आत्महत्या मौत का एक प्रमुख कारण है, और विकासशील देशों में यह समस्या और गंभीर है। भारत में छात्रों के बीच आत्महत्या के मामले भी बढ़ रहे हैं - 2021 में 13,089 छात्रों ने आत्महत्या की। विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रेन बायो बैंक जैसी पहल से न केवल भारत बल्कि वैश्विक स्तर पर आत्महत्या रोकथाम में मदद मिलेगी।
AIIMS की यह पहल मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। सरकार और स्वास्थ्य संगठनों से अपील की जा रही है कि ऐसी रिसर्च को और समर्थन दिया जाए ताकि आत्महत्या के मामलों पर अंकुश लगाया जा सके।