राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने रविवार को भारतीयों से 'मैकाले ज्ञान प्रणाली' के विदेशी प्रभाव से मुक्त होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यह विदेशी शिक्षा प्रणाली ने भारतीयों के मन और बुद्धि को उपनिवेशित कर दिया है। मुंबई में 'आर्य युग' खंड के विमोचन समारोह के दौरान एक सभा को संबोधित करते हुए भागवत ने जोर देकर कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा तक पहुंचने और इसके महत्व को समझने के लिए हमें इस विदेशी प्रभाव से पूरी तरह मुक्त होना होगा।
'हमारी बुद्धि विदेशी हो गई'
मोहन भागवत ने कहा, "हमें भारतीय शिक्षा प्रणाली में नहीं, बल्कि मैकाले ज्ञान प्रणाली (MKS) में शिक्षा दी गई। इस प्रणाली ने हमारी उत्पत्ति, आधार और बुद्धि को विदेशी ढांचे में ढाल दिया। हम भारतीय हैं, लेकिन हमारे मन और बुद्धि विदेशी हो गए हैं। हमें इस विदेशी प्रभाव से पूरी तरह मुक्त होना होगा। तभी हम अपनी समृद्ध ज्ञान परंपरा तक पहुंच पाएंगे और उसका महत्व समझ सकेंगे।" उन्होंने यह भी कहा कि हमें दुनिया की प्रगति का रहस्य समझना चाहिए, उसका मूल्यांकन करना चाहिए और जो अच्छा है उसे अपनाना चाहिए, जबकि बेकार को त्याग देना चाहिए।
'सत्य को जानने के लिए भौतिक मस्तिष्क से परे जाएं'
भागवत ने ज्ञान और सत्य की अवधारणा पर भी गहन विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हमारी पांच ज्ञानेंद्रियां (इंद्रियां जिनसे हम संसार को समझते हैं) मन से मिलने वाले निर्देशों पर आधारित होती हैं। लेकिन यह जो हम देखते हैं, वह पूर्ण सत्य नहीं है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, "आधुनिक विज्ञान भी इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि हमारी ज्ञानेंद्रियों से जो दिखता है, वह मन के निर्देशों पर निर्भर करता है। मनुष्य सात रंग देखता है, लेकिन एक कुत्ता केवल दो रंग और एक मुर्गी तीन रंग देख सकती है।" भागवत, जो पेशे से पशुचिकित्सक भी हैं, ने कहा, "एक कुत्ता और इंसान इस बात पर असहमत होंगे कि कितने रंग दिखते हैं। सत्य को जानने के लिए हमें अपने भौतिक मस्तिष्क से परे जाना होगा। आधुनिक विज्ञान भी कहता है कि सत्य को जानना संभव है।"
भारतीय ज्ञान परंपरा को अपनाने पर जोर
RSS प्रमुख ने भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्जनन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने कहा कि भारत की प्राचीन शिक्षा और दर्शन प्रणाली न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए, बल्कि समाज और विश्व के कल्याण के लिए भी प्रासंगिक है। भागवत के इस बयान को शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में भारतीय मूल्यों को बढ़ावा देने के उनके व्यापक दृष्टिकोण के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है।
सभा में उत्साह, चर्चा का विषय बना बयान
'आर्य युग' के विमोचन समारोह में भागवत के विचारों ने उपस्थित लोगों में उत्साह भरा। उनके इस बयान ने शिक्षा प्रणाली और भारतीय दर्शन के महत्व को लेकर नई बहस छेड़ दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बयान न केवल शिक्षा सुधारों पर बल्कि सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ाने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।