देश के रेलवे यात्रियों के भोजन विकल्पों को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। ट्रेनों में परोसे जाने वाले नॉन-वेज खाने से जुड़ी शिकायत ने अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी दखल देने पर मजबूर कर दिया है। यात्रियों के धार्मिक अधिकारों, आस्था और समान अवसरों से जुड़े इस मामले पर आयोग ने गंभीर रुख अपनाया है और भारतीय रेलवे से तत्काल स्पष्टीकरण मांगा है।
NHRC ने रेलवे को भेजा नोटिस, दो हफ्ते में मांगी रिपोर्ट
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने भारतीय रेलवे को नोटिस जारी करते हुए पूछताछ शुरू कर दी है। एक यात्री द्वारा दर्ज शिकायत में आरोप लगाया गया था कि ट्रेनों में मांसाहारी भोजन के तौर पर केवल हलाल-प्रोसेस्ड मांस उपलब्ध कराया जाता है, जिससे अन्य धार्मिक समूहों और कुछ जातियों के अधिकार प्रभावित हो रहे हैं। आयोग ने मामले को मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 12 के तहत संज्ञान में लेते हुए रेलवे बोर्ड के चेयरमैन से दो सप्ताह के भीतर विस्तृत एक्शन टेकेन रिपोर्ट (ATR) जमा करने का आदेश दिया है।
शिकायत में उठाए गए प्रमुख मुद्दे
शिकायतकर्ता ने कहा है कि केवल हलाल मांस परोसने से—
कुछ हिंदू समुदायों और सिख यात्रियों को उनके धार्मिक मतानुसार भोजन विकल्प नहीं मिल पाते।
मांस व्यापार से जुड़े परंपरागत रूप से वंचित वर्गों को काम के अवसर नहीं मिलते, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित होती है।
यह प्रणाली धार्मिक भेदभाव का रूप ले सकती है और यात्रियों की पसंद की स्वतंत्रता पर प्रभाव डालती है।
शिकायत में संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19(1)(जी), 21 और 25 के उल्लंघन का हवाला दिया गया है और कई महत्वपूर्ण न्यायिक फैसलों का भी उल्लेख किया गया है।
आयोग की टिप्पणियां: “सरकारी सेवा में सबकी आस्था का सम्मान जरूरी”
नोटिस में आयोग ने कहा कि रेलवे एक सार्वजनिक संस्था है और उसे सभी धर्मों के यात्रियों की खाद्य आदतों व संवेदनाओं का सम्मान करना चाहिए। सिर्फ एक प्रकार का मांसाहारी विकल्प उपलब्ध कराना समानता और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों के विपरीत माना जा सकता है।
आयोग ने रेलवे से कहा है कि—
सभी आरोपों की पारदर्शी जांच कराई जाए,
उपलब्ध कराए जा रहे भोजन की प्रक्रिया और नीति को स्पष्ट किया जाए,
और दो सप्ताह में रिपोर्ट आयोग को भेजी जाए, जिसकी एक कॉपी ईमेल पर भी उपलब्ध कराई जाए।
मामले ने बढ़ाई रेलवे कैटरिंग नीतियों पर बहस
यह नोटिस आने के बाद रेलवे में भोजन की मौजूदा व्यवस्था और धार्मिक संवेदनशीलता के बीच संतुलन बनाए रखने पर चर्चा तेज हो गई है। अब नजरें रेलवे की आगामी रिपोर्ट पर हैं, जिससे यह तय होगा कि यात्रियों के लिए नॉन-वेज खाने के विकल्प—विशेषकर धार्मिक आधार पर—कैसे बदले या सुधारे जा सकते हैं।