अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी टीम पर अब यह आरोप लग रहा है कि उन्होंने भारत पर आर्थिक दबाव बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दोस्ती कमजोर करने की कोशिश की। इसी मकसद से अमेरिकी संसद में एक बिल पेश किया गया था, जिसमें रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर खास कर भारत पर 500% तक टैरिफ लगाने का प्रस्ताव था। हालांकि, यह योजना भारी आलोचना के बाद ध्वस्त हो गई।
ट्रंप का भारत विरोधी प्लान
ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन युद्ध का हवाला देकर कहा था कि रूस की तेल आय रोकनी होगी। लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक यह कदम दरअसल भारत को अलग-थलग करने की कोशिश थी। भारत, जो अमेरिका का सबसे भरोसेमंद रणनीतिक साझेदार है, उसके ऊपर अतिरिक्त आर्थिक दबाव डालना सही नहीं माना गया। वर्तमान में भारत पर 25% अतिरिक्त शुल्क लगाया गया है, जिससे अमेरिकी टैरिफ कुल मिलाकर 50% तक पहुंच गया है।
चाबहार बंदरगाह की छूट खत्म
अमेरिका ने ईरान से जुड़े चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट में भारत को दी गई विशेष छूट भी रद्द कर दी। ट्रंप प्रशासन का दावा है कि इससे ईरान की आईआरजीसी (इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स) की आय पर रोक लगेगी। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इस फैसले से भारत-अफगानिस्तान-ईरान सहयोग और क्षेत्रीय संतुलन पर गलत असर पड़ेगा।
H1B वीजा धारकों पर नया बोझ
ट्रंप प्रशासन ने भारतीय आईटी पेशेवरों को झटका देते हुए नए एच1बी आवेदकों पर **100,000 डॉलर का अतिरिक्त शुल्क** थोप दिया। इससे हजारों भारतीय छात्रों और पेशेवरों को अमेरिका जाने में मुश्किल बढ़ गई है। हालांकि, पुराने वीजा धारकों को इस शुल्क से छूट दी गई है। कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की इन नीतियों का सीधा मकसद भारत पर दबाव बनाना था, ताकि मोदी सरकार रूस से दूरी बनाए। लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि वह अपनी ऊर्जा और रणनीतिक साझेदारी के फैसले स्वतंत्र रूप से लेगा। इसी वजह से ट्रंप का “500% टैरिफ प्लान” धराशायी हो गया और उनकी साजिश नाकाम मानी जा रही है।