खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने कल मंगलवार को विले पार्ले स्थित अपने केंद्रीय कार्यालय में ‘विश्व मधुमक्खी दिवस-2025’ के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया। इस भव्य कार्यक्रम का उद्घाटन केवीआईसी के अध्यक्ष मनोज कुमार ने किया। केवीआईसी अध्यक्ष ने विशेष रूप से केवीआईसी के ‘हनी मिशन’ की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि केवीआईसी द्वारा अब तक देशभर में 2,29,409 मधुमक्खी बक्से और मधु कॉलोनियां वितरित की गई हैं, जिससे लगभग 20,000 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन हुआ है। इससे मधुमक्खी पालकों को लगभग 325 करोड़ रुपये की आमदनी हुई है। उन्होंने बताया कि वित्त वर्ष 2024-25 में केवीआईसी से जुड़े मधुमक्खी पालकों ने करीब 25 करोड़ रुपये मूल्य का शहद विदेश में निर्यात किया है।
इस वर्ष का आयोजन थीम –”प्रकृति से प्रेरित मधुमक्खी, सबके जीवन की पोषक” पर आधारित था। इस अवसर पर महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों से आए मधुमक्खी पालक लाभार्थी, प्रशिक्षु, वैज्ञानिकों, सफल मधुमक्खी पालकों, छात्रों, और विशेषज्ञों की उपस्थिति रही। यह आयोजन न केवल एक तकनीकी मंच रहा, बल्कि ग्रामीण भारत के नवाचार, प्रेरणा और स्वावलंबन की सजीव मिसाल बना।
मनोज कुमार ने अपने संबोधन में कहा, “मधुमक्खियां हमारे पारिस्थितिकी तंत्र की रीढ़ हैं। ये न केवल शहद देती हैं, बल्कि परागण के जरिए हमारी खेती को समृद्ध करती हैं और पर्यावरण का संरक्षण करती हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शुरू किया गया ‘हनी मिशन’ आज गांवों की आजीविका का बड़ा आधार बन चुका है।”
उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री ने जब ‘स्वीट रेवोल्यूशन’ का आह्वान किया, तब उन्होंने एक नया रास्ता दिखाया, जिसमें शहद उत्पादन न केवल आर्थिक समृद्धि का, बल्कि स्वास्थ्य समृद्धि का भी स्रोत बना। उनके नेतृत्व में केवीआईसी ने इस दिशा में जो कार्य किया है, वह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक बड़ा कदम है।”
कार्यक्रम में केंद्रीय मधुमक्खी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान (सीबीआरटीआई), पुणे की ऐतिहासिक भूमिका पर भी प्रकाश डाला गया। बताया गया कि वर्ष 1962 में स्थापित इस संस्थान ने आज तक 50,000 से अधिक मधुमक्खी पालकों को आधुनिक तकनीकों की ट्रेनिंग दी है। सीबीआरटीआई का उद्देश्य न केवल शहद उत्पादन को बढ़ावा देना है, बल्कि किसानों को परागण के माध्यम से कृषि और बागवानी उत्पादकता बढ़ाने की जानकारी देना, मधुमक्खी पालन से संबंधित अनुसंधानों को बढ़ावा देना और उद्यमिता विकास को सशक्त करना भी है।
कार्यक्रम के दौरान वैज्ञानिकों ने बताया कि मधुमक्खियां केवल शहद उत्पादन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि लगभग 75 प्रतिशत खाद्य फसलों का परागण मधुमक्खियों के माध्यम से होता है। यदि मधुमक्खियां न रहें, तो 30 प्रतिशत खाद्य फसलें और 90 प्रतिशत जंगली पौधों की प्रजातियां संकट में आ सकती हैं।