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राष्ट्रीय

शुभांशु शुक्ला के साथ अंतरिक्ष की उड़ान पर 'जॉय' भी जाएगा, जानें इस खिलौने का क्या है काम...

25 जून, 2025 04:28 PM

अंतरिक्ष की ठंडक और तकनीक के बीच इस बार एक खास मेहमान भी होगा—‘जॉय’, एक पांच इंच लंबा मुलायम सवान का खिलौना। जब Axiom-4 मिशन के सदस्य नासा के केनेडी स्पेस सेंटर से आज उड़ान भरेंगे, तो उनके साथ यह छोटा लेकिन बेहद खास प्रतीक भी होगा। यह न केवल मिशन का ज्वलंत हिस्सा होगा, बल्कि शून्य गुरुत्वाकर्षण का संकेत देने वाला एक अनोखा संदेशवाहक भी साबित होगा।


सिर्फ एक खिलौना नहीं, भावनाओं का सागर
जॉय की नरम बनावट के पीछे गहरा सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्व छुपा है। यह मिशन के उन मूल्यों को दर्शाता है जो देशों, संस्कृतियों और इंसानों को जोड़ते हैं। भारतीय मिथक में सवान को देवी सरस्वती का वाहन माना जाता है, जो बुद्धि, शुद्धता और विवेक का प्रतीक है। यह प्रतीक मिशन के उद्देश्य से पूरी तरह मेल खाता है—जहां विज्ञान, समझदारी और अनुभव का संगम होता है।


मिशन के सदस्यों की साझा भावना
इस अंतरराष्ट्रीय मिशन में भारत, हंगरी, पोलैंड और अमेरिका के सदस्य शामिल हैं। सभी ने इस छोटे सवान को अपनी सांस्कृतिक एकता और सौंदर्य का प्रतीक माना। हंगेरियन अंतरिक्ष यात्री टिबोर कपु ने इसे ‘जॉय’ नाम दिया, जो मिशन के उत्साह और खुशी को दर्शाता है।

 

जब गुरुत्वाकर्षण खत्म होगा…
यह कोई असली हंस नहीं, बल्कि एक प्यारा सा सॉफ्ट टॉय है, लेकिन इसका काम बहुत खास है। आप सोच रहे होंगे, आखिर एक खिलौना अंतरिक्ष में क्या करेगा? जब रॉकेट अंतरिक्ष में पहुंचता है और गुरुत्वाकर्षण की ताकत खत्म हो जाती है, तब सब कुछ हवा में तैरने लगता है। उस समय ‘जॉय’ को यान में आज़ाद छोड़ दिया जाएगा। जैसे ही यह खिलौना हवा में तैरने लगेगा, सभी अंतरिक्ष यात्री खुशी से कहेंगे – “अब हम सच में अंतरिक्ष में हैं!” इसलिए ‘जॉय’ सिर्फ एक खिलौना नहीं, बल्कि वह खास संकेत है जो बताता है कि असली स्पेस यात्रा शुरू हो चुकी है।

 

Axiom-4 मिशन वैज्ञानिक प्रयोगों, अंतरिक्ष यात्राओं और वैश्विक सहयोग का संगम है, लेकिन जॉय इसकी आत्मा को छूता है। यह याद दिलाता है कि अंतरिक्ष केवल तकनीक और खोज नहीं, बल्कि मानव भावना, पहचान और उस अनकहे सफर की कहानी भी है जो हम धरती से परे लेकर जाते हैं।

 

‘हंस’ टॉय क्यों चुना गया?
Axiom-4 मिशन के चार अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष यात्रियों ने अपने साथ एक खास सॉफ्ट टॉय के रूप में ‘हंस’ को चुना। यह सिर्फ एक खिलौना नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और भावनात्मक प्रतीक है, जिसे सभी ने मिलकर अपने मिशन का भाग बनाया। भारतीय पायलट और ISRO के गगनयात्री शुभांशु शुक्ला के लिए तो इस हंस का मतलब और भी खास है। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति में हंस को देवी सरस्वती का वाहन माना जाता है, जो ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक है। साथ ही, हंस को दूध और पानी को अलग करने की अपनी खास क्षमता के लिए भी जाना जाता है, जो समझदारी, शुद्धता और विवेक का प्रतीक है। यही वजह है कि इस खास मिशन के लिए ‘हंस’ को चुना गया।


वहीं, शुभांशु शुक्ला ने बताया, हंस मुझे ज्ञान और जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाए रखने की याद दिलाता है। यह मेरे उन मूल्यों से जुड़ने का प्रतीक है जो मेरे लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। इस मिशन पर जाते हुए मैं खुद को प्रेरित, तैयार और आत्मविश्वासी महसूस करता हूं। अगर सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ, तो शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष जाने वाले दूसरे भारतीय होंगे। इससे पहले लगभग 40 साल पहले राकेश शर्मा ने यह उपलब्धि हासिल की थी।

 

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