ब्यास दुनिया के सबसे उम्रदराज एथलीट फौजा सिंह आज पंचतत्व में विलीन हो गए। उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए सुबह 9 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक घर पर रखा गया था। इसके बाद उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई और ब्यास स्थित श्मशान घाट में अंतिम संस्कार किया गया।
उनकी अंतिम विदाई में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया, मंत्री मोहिंदर भगत और कई राजनीतिक-सामाजिक हस्तियों ने श्रद्धांजलि दी। अंतिम यात्रा में हजारों लोगों का जनसैलाब उमड़ा।
अंतिम दर्शन के लिए उमड़ी भीड़
सुबह जालंधर के सिविल अस्पताल से फौजा सिंह का पार्थिव शरीर उनके घर लाया गया। सुबह 9 बजे से अंतिम दर्शन के लिए दरवाजे आम लोगों के लिए खोल दिए गए। दोपहर तक भारी संख्या में लोग अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे। इसके बाद धार्मिक रस्मों के साथ उनकी अंतिम यात्रा शुरू की गई और ब्यास के श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
मुख्यमंत्री भगवंत मान बोले - “फौजा सिंह जी प्रेरणा थे”
मुख्यमंत्री मान ने भावुक होकर कहा कि, “फौजा सिंह जी का जीवन इस बात की मिसाल है कि अगर हौसला हो तो उम्र कोई मायने नहीं रखती। उन्होंने न सिर्फ खेलों में, बल्कि समाज को जागरूक करने में भी बड़ा योगदान दिया।” इस मौके पर राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया ने भी श्रद्धांजलि दी और कहा कि नशा मुक्ति यात्रा के दौरान फौजा सिंह उनके साथ चले थे। उनके जज्बे को सलाम है।
हादसे में गई जान, आरोपी एनआरआई गिरफ्तार
फौजा सिंह की मौत एक सड़क हादसे में हुई। वह अपने घर से कुछ दूरी पर टहल रहे थे, तभी एक फॉर्च्यूनर कार ने उन्हें टक्कर मार दी। कार चला रहा युवक एनआरआई अमृतपाल सिंह ढिल्लों था, जो टक्कर मारने के बाद फरार हो गया था। पुलिस ने 30 घंटे में आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। कोर्ट में पेशी के बाद उसे जेल भेज दिया गया है।
100 की उम्र में पूरी की इंटरनेशनल मैराथन
फौजा सिंह ने 90 साल की उम्र में दौड़ना शुरू किया था और 100 की उम्र में उन्होंने इंटरनेशनल मैराथन में हिस्सा लेकर दुनिया को चौंका दिया। वे ‘सेंचुरी रनर’ के नाम से मशहूर हुए और भारत का नाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रोशन किया। उनका जीवन फिटनेस, संकल्प और जज़्बे की मिसाल है।
अंतिम विदाई में उमड़ा जनसैलाब
उनकी अंतिम यात्रा में खेल, राजनीति, सामाजिक संगठनों, और आम लोगों का सैलाब देखने को मिला। कई लोग आंखों में आंसू और दिल में गर्व लिए उन्हें अंतिम बार विदा करने पहुंचे।
प्रेरणा का नाम था फौजा सिंह
फौजा सिंह सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं थे, वे एक आंदोलन थे — यह साबित करने का कि "उम्र सिर्फ एक संख्या है, और जज़्बा हो तो कुछ भी मुमकिन है।"