भारत की अर्थव्यवस्था अगले साल से एक नए दौर में प्रवेश करने जा रही है। सरकार ने देश के आर्थिक आंकड़ों को अधिक सटीक, पारदर्शी और आधुनिक समय के अनुरूप बनाने की बड़ी तैयारी शुरू कर दी है। यह बदलाव सिर्फ आंकड़ों का नहीं होगा — बल्कि आपकी कमाई, खर्च और महंगाई के पूरे गणित को नए सिरे से परिभाषित करेगा।
पुराने सिस्टम की जगह नया बेस ईयर
फिलहाल भारत की GDP, CPI (महंगाई) और अन्य प्रमुख आर्थिक सूचकांक 2011-12 के बेस ईयर पर आधारित हैं। यानी, उस दौर की कीमतें और उपभोग पैटर्न को आज भी मापदंड माना जा रहा है — जबकि तब की अर्थव्यवस्था मोबाइल डेटा, डिजिटल पेमेंट या ऑनलाइन सेवाओं से बहुत अलग थी। अब सरकार इसे अपडेट करने जा रही है। नया बेस ईयर 2022-23 तय किया जाएगा, ताकि आज की जीवनशैली और खर्च करने के तौर-तरीके सही तरह से प्रतिबिंबित हों।
27 फरवरी 2026 को आएंगे नए GDP आंकड़े
नए सिस्टम के तहत 27 फरवरी 2026 को सरकार GDP के नए आंकड़े जारी करेगी, जो पूरी तरह 2022-23 की कीमतों पर आधारित होंगे। हालांकि, 7 जनवरी 2026 को आने वाले बजट अनुमान अभी पुराने बेस ईयर पर ही तैयार होंगे। महंगाई यानी CPI इंडेक्स के नए आंकड़े भी फरवरी 2026 में जारी किए जाएंगे, जो 2023-24 के मूल्य स्तर को ध्यान में रखेंगे।
सर्विस सेक्टर के लिए पहली बार बनेगा अलग इंडेक्स
भारत की GDP में सर्विस सेक्टर की हिस्सेदारी सबसे बड़ी है - बैंकिंग, डिजिटल सेवाएं, ई-कॉमर्स, ट्रैवल और लॉजिस्टिक्स जैसे क्षेत्र आज विकास के असली इंजन बन चुके हैं। इसके बावजूद अब तक कोई ऐसा इंडेक्स नहीं था जो सर्विस सेक्टर की वास्तविक वृद्धि को माप सके। सरकार अब पहली बार एक अलग "सर्विस सेक्टर इंडेक्स" लाने जा रही है, जो इन आधुनिक उद्योगों की ग्रोथ को सटीक तरीके से ट्रैक करेगा।
CPI में बड़े बदलाव - अब दिखेगा महंगाई का असली असर
महंगाई दर (CPI) के आकलन में भी सुधार किया जा रहा है। इसमें रोजमर्रा की जरूरतों, डिजिटल सेवाओं और पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (PDS) से मिलने वाले अनाज जैसी वस्तुओं को भी अब सही हिस्सेदारी दी जाएगी। इससे सरकार को यह समझने में मदद मिलेगी कि महंगाई वास्तव में आम जनता को कितना प्रभावित कर रही है।
क्यों जरूरी है यह अपडेट
2011-12 के बाद भारत की अर्थव्यवस्था में भारी बदलाव आए हैं।
उपभोक्ता खर्च अब खाने-पीने से हटकर डिजिटल, कम्युनिकेशन, हेल्थ और एजुकेशन सेवाओं की ओर बढ़ गया है।
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और ऐप-आधारित बिज़नेस ने खपत का स्वरूप ही बदल दिया है।
उद्योग और सेवा क्षेत्र के बीच संतुलन पूरी तरह नया रूप ले चुका है।
ऐसे में पुराने डेटा पर बने आर्थिक सूचकांक अब वर्तमान स्थिति को सही ढंग से नहीं दर्शाते। नया बेस ईयर इन सब बदलावों को ध्यान में रखेगा, जिससे देश की वास्तविक आर्थिक ताकत और चुनौतियां दोनों स्पष्ट हो सकेंगी।
आम जनता के लिए क्या बदल जाएगा
इन बदलावों का सीधा असर नीतियों, बजट आवंटन और महंगाई नियंत्रण पर पड़ेगा। जब सरकार के पास वास्तविक आंकड़े होंगे, तो वह बेहतर फैसले ले सकेगी —
महंगाई राहत योजनाओं को सटीक बनाया जा सकेगा।
आयकर और सब्सिडी नीति को अधिक संतुलित किया जा सकेगा।
और GDP वृद्धि का वास्तविक आकलन यह दिखाएगा कि किस वर्ग की आमदनी वास्तव में बढ़ी या घटी है।
नतीजा: नई पारदर्शिता, नया आर्थिक नक्शा
यह कदम भारत की आर्थिक नीति निर्माण में एक ऐतिहासिक बदलाव माना जा रहा है। अब GDP, महंगाई और औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े ज्यादा यथार्थपरक और आधुनिक अर्थव्यवस्था के अनुरूप होंगे। इससे न सिर्फ नीति निर्माण सटीक होगा बल्कि आम आदमी की जेब पर असर डालने वाले फैसलों की दिशा भी अधिक समझदारी से तय की जा सकेगी।