नई दिल्ली। सड़क हादसे में मुआवजे और एक्सीडेंट क्लेम को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2 बड़े फैसले दिए हैं। पहले फैसले में शीर्ष अदालत ने साफ कहा है कि अगर कोई लापरवाही से गाड़ी चलाते हुए दुर्घटना का शिकार बनता है और उसकी जान चली जाती है तो बीमा कंपनियां उसे पैसे देने के लिए बाध्य नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि ओवरस्पीड या स्टंट के मामले में हादसा होने पर बीमा का पैसा नहीं मिलेगा। इसके लिए बीमा कंपनियों को मजबूर नहीं किया जा सकता है। वहीं, दूसरे फैसले में में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर हादसे में किसी की मौत हो जाती है और उसके बेटे-बेटियां विवाहित हैं तो मोटर वाहन अधिनियम के तहत वे मुआवजा पाने के हकदार हैं, बेशक मृतक उन पर आर्थिक रूप से निर्भर थे या नहीं।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का पहला फैसला?
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने हादसे में जान गंवाने वाले एनएस रविशा के परिवार ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से 80 लाख रुपए मुआवजे की मांग की थी। कोर्ट ने व्यक्ति की पत्नी, बेटे और माता-पिता को राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि तेज गति और लापरवाही से गाड़ी चलाते हुए दुर्घटना में जान गई है तो इसका भुगतान बीमा कंपनियों को नहीं करना होगा। कोर्ट ने आदेश में कहा कि शिकायतकर्ता ने लापरवाही से गाड़ी चलाई, नियम तोड़े और कार पलट गई, जिसमें उसकी जान भी चली गई। ऐसे मामलों में बीमा कंपनियों पर देनदारी नहीं बनती है। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के पिछले साल 23 नवंबर के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें उनके मुआवजे के दावे को खारिज कर दिया गया था।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला 18 जून 2014 का है, जब एनएस रविशा मल्लासंद्रा गांव से अरसीकेरे शहर की ओर अपनी फिएट लीनिया कार से जा रहे थे। उनके साथ पिता, बहन और बच्चे भी थे। लापरवाही से तेज गति में गाड़ी चलाई और यातायात नियमों का उल्लंघन किया, जिससे अरसीकेरे के पास माइलनाहल्ली गेट पर वाहन से नियंत्रण खो दिया और कार पलट गई। हादसे में रविशा की मौत हो गई। इसके बाद उनकी पत्नी, बेटे और माता-पिता ने 80 लाख रुपए मुआवजे की मांग की। उनका दावा था कि वह एक ठेकेदार थे और प्रति माह 3 लाख रुपए कमा रहे थे। पुलिस ने अपनी चार्जशीट में खुलासा किया कि दुर्घटना रविशा की लापरवाही से गाड़ी चलाने के कारण हुई। लिहाजा मोटर दुर्घटना ट्रिब्यूनल ने परिवार के दावे को खारिज कर दिया।
क्या है कोर्ट का दूसरा फैसला?
12 अक्टूबर 2010 को हुए हादसे से जुड़े केस में जजमेंट देते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि हादसे में जान गंवाने वाले के विवाहित बेटे और बेटियां भी मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजा पाने के हकदार हैं, बेशक मृतक उन पर आर्थिक रूप से निर्भर था या नहीं। जितेंद्र कुमार एवं अन्य बनाम संजय प्रसाद एवं अन्य केस में फैसला सुनाया गया। हादसे में 64 वर्षीय निरंजन दास की जान गई थी। निरंजन अपने दोस्त के साथ कहीं जा रहे थे कि एक ट्रेलर ने उनकी कार को टक्कर मार दी।
ट्रेलर ड्राइवर के खिलाफ धारा 279 और 304ए के तहत केस दर्ज हुआ था। मृतक निरंजन के 2 विवाहित बेटें और अविवाहित बेटी ने मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 166 के तहत 5 करोड़ के मुआवजे की मांग की थी। न्यायालय ने निर्देश दिया कि मुआवज़ा सीधे दोनों बेटों (अपीलकर्ता संख्या 1 और 2) और अविवाहित बेटी (प्रतिवादी संख्या 4) के बैंक खातों में भेजा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने मृतक के बच्चों और इंश्योरेंस कंपनी की ओर से पेश किए सबूतों के आधार पर बीमा कंपनी को निर्देश दिया गया कि मुआवजा दिया जाए और बच्चों के बैंक खातों में एक महीने के अंदर ट्रांसफर करे।