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धरती से ISS सिर्फ से 400 किलोमीटर दूर फिर भी शुभांशु शुक्ला को लगेंगे 28 घंटे, क्यों लगेगा इतना समय जानिए पूरा गणित

धरती से ISS सिर्फ से 400 किलोमीटर दूर फिर भी शुभांशु शुक्ला को लगेंगे 28 घंटे, क्यों लगेगा इतना समय जानिए पूरा गणित

25 जून, 2025 04:25 PM

पृथ्वी से अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की दूरी लगभग 400 किलोमीटर है, लेकिन शुभांशु शुक्ला के स्पेसक्राफ्ट ड्रैगन को इस दूरी को पूरा करने में करीब 28.5 से 29 घंटे का समय लगेगा। आप सोच रहे होंगे कि इतनी कम दूरी तय करने में इतना अधिक समय क्यों लगता है। इसका कारण यह है कि इस अंतरिक्ष यान को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल को पार करना होता है और सही कक्षा में पहुंचने के लिए भारी गति और ऊर्जा की जरूरत होती है। इसके अलावा, ISS के साथ स्पेसक्राफ्ट की डॉकिंग एक बेहद नाजुक और जटिल प्रक्रिया होती है, जिसमें कोई भी गलती खतरनाक साबित हो सकती है। इसलिए, स्पेसक्राफ्ट को धीरे-धीरे और सावधानी से ISS के पास पहुंचना होता है ताकि डॉकिंग पूरी तरह से सुरक्षित हो सके।

ISS से अंतरिक्ष यान को मिलाना जटिल प्रक्रिया
1. ISS पृथ्वी की सतह से लगभग 400 किलोमीटर ऊपर “लो अर्थ ऑर्बिट” में स्थित है और यह हर 90 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करता है, यानी इसकी गति लगभग 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे है।

2. ड्रैगन यान को सीधे ISS तक नहीं पहुंचाया जाता, बल्कि उसे पहले अपनी कक्षा में धीरे-धीरे समायोजित करना होता है ताकि वह ISS की दिशा, ऊंचाई और गति के साथ तालमेल बिठा सके। इस प्रक्रिया को फेजिंग मैन्यूवर्स (Phasing Manoeuvres) कहा जाता है, जिसमें यान के थ्रस्टर्स (इंजन) कई बार सक्रिय किए जाते हैं ताकि उसकी कक्षा को धीरे-धीरे बदला जा सके।

3. इस दौरान स्पेसएक्स का ड्रैगन यान 16 "Draco थ्रस्टर्स" का उपयोग करता है, जो अंतरिक्ष में 90 पाउंड का बल उत्पन्न करते हैं।

 

डॉकिंग और सुरक्षा जांच में लगता है अतिरिक्त समय
1. जब ड्रैगन यान ISS के करीब पहुंचता है, तो उसकी गति काफी कम कर दी जाती है ताकि वह सुरक्षित रूप से स्टेशन से जुड़ सके। यह डॉकिंग प्रक्रिया अत्यंत निपुणता और सटीकता मांगती है, क्योंकि किसी भी छोटी गलती से गंभीर दुर्घटना हो सकती है।

2. डॉकिंग पूरी होने के बाद लगभग 1 से 2 घंटे तक अंतरिक्ष यान और ISS के बीच दबाव के स्तर की बराबरी और रिसाव की जांच की जाती है। इसी के बाद यान के अंदर मौजूद अंतरिक्ष यात्री स्टेशन में प्रवेश कर पाते हैं। 

 

रूसी सोयूज़ vs ड्रैगन
1. रूसी सोयूज़ यान को ISS तक पहुंचने में सिर्फ 8 घंटे लगते हैं, क्योंकि वह दशकों पुरानी तकनीक और सटीक गणनाओं पर आधारित है. वहीं, स्पेसएक्स का ड्रैगन यान एक नई टेक्नोलॉजी है, जिसे पहली बार 2012 में मानव रहित और बाद में मानव सहित उड़ानों के लिए तैयार किया गया.

2. ड्रैगन के फेजिंग और डॉकिंग के लिए स्पेसएक्स अभी भी गणनाओं और मैन्यूवर्स के नए मॉडल पर काम कर रहा है, जिससे समय थोड़ा ज्यादा लग रहा है.


अलग-अलग चुनौतियों से हो सकता है सामना

1. अंतरिक्ष यान को स्पेस स्टेशन तक पहुंचने के दौरान कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनमें सबसे प्रमुख हैं यान की तकनीकी खराबियां, अंतरिक्ष में नेविगेशन संबंधी समस्याएं, और अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां।

2. लॉन्च के समय या यात्रा के दौरान यान के सिस्टम में दिक्कतें आ सकती हैं, जैसे इंजन फेल होना, ईंधन का रिसाव, या संचार प्रणाली में खराबी।

3. स्पेस स्टेशन तक सही तरीके से पहुंचने के लिए नेविगेशन बेहद महत्वपूर्ण होता है। अगर यान अपनी दिशा या गति को ठीक से नियंत्रित नहीं कर पाता है, तो वह स्टेशन तक नहीं पहुंच पाएगा।

4. अंतरिक्ष में कम गुरुत्वाकर्षण (माइक्रोग्रैविटी) के कारण यात्रियों के शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं, जिससे उनकी मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं और हड्डियां भी कमजोर पड़ सकती हैं। इसके अलावा चक्कर आना और मतली जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।

5. इसके अलावा, अंतरिक्ष में विकिरण का स्तर बहुत अधिक होता है, जो न केवल यात्रियों के लिए बल्कि यान की कार्यप्रणाली के लिए भी नुकसानदेह हो सकता है।

6. अंतरिक्ष में मौजूद छोटे-मोटे मलबे भी खतरा पैदा करते हैं, जो तेज़ गति से घूमते हुए यान या स्टेशन से टकरा सकते हैं और नुकसान पहुंचा सकते हैं।

7. इन सभी बाधाओं के बावजूद, वैज्ञानिक और इंजीनियर निरंतर मेहनत कर रहे हैं ताकि इन जोखिमों को कम किया जा सके और अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित रूप से स्पेस स्टेशन तक पहुंचाया जा सके।


बेहद खास है ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट 

1. शुभांशु शुक्ला सहित चार अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर जा रहा स्पेसक्राफ्ट खास महत्व रखता है। SpaceX की वेबसाइट के अनुसार, ड्रैगन अंतरिक्ष यान अब तक कुल 51 मिशन सफलतापूर्वक पूरा कर चुका है और यह अपना 52वां मिशन शुरू कर चुका है। इससे पहले यह अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर 46 बार पहुंच चुका है और 31 बार पृथ्वी पर लौटने के बाद पुनः अंतरिक्ष की यात्रा पर गया है।

2. ड्रैगन यान एक साथ सात अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की कक्षा यानी अर्थ ऑर्बिट और उससे आगे तक ले जाने में सक्षम है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह न केवल अंतरिक्ष तक जाता है, बल्कि सुरक्षित वापस भी आता है और इसे पुनः उपयोग किया जा सकता है।

3. ड्रैगन यान में "ड्रेको थ्रस्टर्स" लगे होते हैं, जो इसे किसी भी ऑर्बिट में अपनी दिशा बदलने की क्षमता देते हैं। इसके अलावा इसमें आठ सुपर ड्रेकोज भी होते हैं, जो लॉन्च एस्केप सिस्टम को शक्ति प्रदान करते हैं।

4. इस यान की ऊंचाई लगभग 8.1 मीटर है और चौड़ाई लगभग 4 मीटर है। लॉन्च के समय इसका पेलोड वजन लगभग 6000 किलो होता है, जबकि पृथ्वी पर वापस लौटते समय यह वजन आधा होकर लगभग 3000 किलो रह जाता है।

 

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