सिरसा।।(सतीश बंसल)। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान जिसके संस्थापक एवं संचालक आशुतोष महाराज की असीम कृपा से श्री श्याम बगीची में तीन दिवसीय श्री हरि कथा का कार्यक्रम आयोजित किया गया। कथा के दूसरे दिन में गुरुदेव सर्व आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी दिवेशा भारती ने संत नामदेव की जीवन गाथा को प्रस्तुत करते हुए बताया कि संत नामदेव भगवान वि_ल के अनन्य भक्त हैं। बचपन से ही भगवान वि_ल उनके समक्ष प्रकट होते रहे। बाल्य काल से ही भगवान के चरणों से उनकी अटूट प्रीति थी और भगवान की आराधना करते थे। भगवान को जब भी पुकारते भगवान अपनी मूर्ति में से प्रकट होकर के उनको दर्शन देते थे, लेकिन संत नामदेव का जीवन चरित्र साथ ही साथ हमें बहुत बड़ी सत्यता से जागरूक करवा रहा है। कहते है संत नामदेव जी बड़े हो जाते हैं। तब भी इतने वर्षों से बाल्य काल से लेकर के उनके बड़े होने तक उनके सामने प्रकट होते रहे और एक दिन वह प्रकट हो कर उनको कहते कि आज तू गोरा कुम्हार के घर में जा और वहां पर उच्च कोटि के संत महात्मा पधार रहे हैं। उनको मिलकर आओ और संत नामदेव गए और जब गए उनको वहां पर यह सुनना पड़ा कि अभी यह भगवान का कच्चा घड़ा है। हृदय पर ब्रजघाट हुआ भगवान वि_ल के समक्ष आते हैं। भगवान वि_ल को आकर के सारी बात सुनते हैं तो भगवान वि_ल ने भी कहा कि हां वह सत्य कह रहे हैं अभी तो मेरा कच्चा घड़ा है, क्योंकि अभी तेरे जीवन में गुरु का आगमन नहीं हुआ गुरु की कृपा से ही भगवान को देखा जा सकता है। भगवान को जाना जा सकता है संत नामदेव जी को भगवान वि_ल यह बात कहते हैं और हमारे प्रत्येक ग्रंथ प्रत्येक शास्त्र भी इस बात को समझाते हुए कह रहे हैं कि इंसान के जीवन में गुरु का होना अति आवश्यक जब गुरु जीवन में आएंगे तब वो परमात्मा की भक्ति को परमात्मा को हमारे हृदय में प्रकट करेंगे कारण, क्योंकि भगवान हमारे अंत:करण में विद्यमान है। और उसको यदि हमने देखना है। तो अंत:करण की गहराई में उतरना पड़ेगा और फिर कहीं जाकर के हम भगवान को देखेंगे, जानेंगे यह वेदों का सार है। यह ग्रन्थों का सार है, इसलिए गुरु की शरण को धारण करना अति आवश्यक है। इस सृष्टि के रचयिता भगवान श्री राम को भी गुरु की शरण में जाना पड़ा। इस सृष्टि के रचयिता भगवान कृष्ण उन्होंने भी गुरु धारण की। क्योंकि यह सृष्टि का बनाया हुआ अटल नियम है जो भी आया है उसे गुरु की शरण में जाना है और भगवान कृष्ण और भगवान राम इस सृष्टि के बने हुए अटल नियम की पालना करते हैं। वह भी गुरु धारण करते हैं इस कर्म के द्वारा उन्होंने अवगत करवाया कि यदि हम गुरु की शरण को धारण कर सकते हैं। तो एक इंसान को भी इस सृष्टि के बने हुए अटल नियम की पालना करनी पड़ेगी फिर ही भगवान की प्राप्ति हो सकती है और भगवान जिसे देखा जा सकता है जाना जा सकता है वह हमारे हृदय में स्थित है और गुरु जब हमारे जीवन में आएंगे हमारे मस्तिष्क पर हाथ रख दोनों भरीकुटिया के मध्य में स्थित तीसरी आंख को खोलेंगे और जब तीसरी आंख खोलेंगे फिर हम अपने अंत:करण के गृह में उतरेंगे और तब तीसरी आंख के द्वारा उस भगवान का दर्शन करेंगे, यही वेदों का सार है। जो हमें समझाया गया और इसके साथ साध्वी ने बताया कि जिस प्रकार से नामदेव जी उनको बाल्य काल से ही ऐसा आध्यात्मिक वातावरण मिला हुआ था मंदिर में जाते थे भगवान की मूर्ति के साथ उनका कितना प्रेम था बाल्य काल से ही वह भगवान से प्रीति करते थे और आज के बच्चों को ऐसी दिशा देनी चाहिए आज के बच्चों को भी इस बात से जागरूक करना चाहिए कि उनका प्रेम भगवान के प्रति होना चाहिए, लेकिन वर्तमान स्थिति को देखते हुए आज के बच्चों को देखते हुए यह लगता है कि आज के बच्चों का झुकाव भगवान के प्रति रह नहीं गया है। आज के बच्चों को मोबाइल से ज्यादा आसक्ति है ठीक है। मोबाइल एक इंसान की जरूरत है, लेकिन आज के छोटे-छोटे बच्चों ने मोबाइल को अपना सर्वस्व आधार बना दिया है क्योंकि उनको ऐसा वातावरण नहीं मिल रहा जैसा नामदेव को मिला था। नामदेव जी के माता-पिता मंदिर में जाते थे भगवान के साथ अटूट श्रद्धा रखते थे और आगे उनका बेटा भी इसी मार्ग पर चलते हैं, ठीक इसी प्रकार से आज के माता-पिता यदि वह अच्छे मार्ग पर चलेंगे तो उनके बच्चे भी उनके बताए हुए अच्छे मार्ग का अनुसरण करेंगे। अगर बच्चों को कुछ देना चाहते हैं बच्चों को बनाना चाहते हैं कुछ तो इसके लिए माता-पिता को ही जागरूक होना पड़ेगा। अपनी भारतीय संस्कृति के साथ जुडऩा पड़ेगा। जब अपने भारतीय संस्कृति के साथ बच्चे जुड़ेंगे तब उनको पता चलेगा कि किस प्रकार से वह अपने अस्तित्व को भगवान की नजरों में महान बना सकते हैं और इसके साथ-साथ साध्वी बहनों ने भजनों के द्वारा संगत को मंत्र मुक्त किया और इस प्रोग्राम का समापन प्रभु की आरती से हुआ।