G7 जैसे वैश्विक मंच पर भारत ने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कर दुनिया को बड़ा संदेश दिया है। तमाम राष्ट्राध्यक्षों के सामने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आतंकवाद पर दोहरी नीति अपनाने वाले देशों को कटघरे में खड़ा कर एक बार फिर भारत के नैतिक नेतृत्व का उद्घोष किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आतंकवाद को लेकर पश्चिमी देशों की चुप्पी, वैश्विक संस्थाओं की पक्षपातपूर्ण नीति और पाकिस्तान जैसे आतंक के संरक्षकों को दिए जा रहे आर्थिक पुरस्कारों पर कठोर प्रश्न उठाए। प्रधानमंत्री मोदी का G7 के मंच से दिया गया संदेश सीधे-सीधे आतंकवाद पर दोहरी अंतरराष्ट्रीय नीति में एक नैतिक हस्तक्षेप है, जिसे अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
आतंकवाद से लड़ने के नाम पर केवल दिखावा कब तक?
अब दुनिया के सामने यह प्रत्यक्ष बड़ा सवाल है कि क्या वैश्विक संस्थाएं आतंकवाद से लड़ने के नाम पर केवल दिखावा तो नहीं कर रही हैं? क्या आतंकवादियों को पालने वाले देशों को खुलेआम आर्थिक सहूलियतें देकर हम पूरी मानवता के साथ विश्वासघात नहीं कर रहे? इन सवालों के बाद IMF, World Bank, UN और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को यह सोचना होगा कि क्या वे वास्तव में वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं या फिर केवल राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से निर्णय लेने वाली एजेंसियां बनकर रह गई हैं? भारत ने हमेशा की तरह एक बार फिर अपना फर्ज निभाते हुए आतंक पर मौन रहने वाले देशों को नैतिक आईना दिखाया है जिसमें उन्हें अपना ढुलमुल रवैया, पाखंड और आत्मघाती चुप्पी साफ दिखाई देनी चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी के स्पष्ट रुख और दृढ़ता से G7 में भारत अब केवल एक आमंत्रित राष्ट्र नहीं बल्कि नैतिक नेतृत्व का वाहक बनकर खड़ा हुआ है।
विश्व पटल पर आतंक के खिलाफ अडिग प्रतिबद्धता
इस बात में कोई शक नहीं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हालिया G7 सम्मेलन में दिया गया भाषण सिर्फ एक औपचारिक वक्तव्य नहीं था बल्कि यह वैश्विक पटल पर भारत की दृढ़ इच्छाशक्ति, नीतिगत स्पष्टता और आतंकवाद के विरुद्ध उसकी अडिग प्रतिबद्धता का जीवंत घोषणापत्र है। जब विश्व के शीर्ष नेताओं के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने सीधे-सीधे यह सवाल उठाया, ’एक तरफ तो हम अपनी पसंद के हिसाब से हर तरह के प्रतिबंध लगाने में तत्पर रहते हैं। दूसरी तरफ, आतंकवाद का खुलकर समर्थन करने वाले देशों को पुरस्कृत किया जाता है।’ इससे सवाल उठता है कि क्या वैश्विक संस्थाएं वास्तव में आतंकवाद के विरुद्ध गंभीर हैं?
दोहरे मापदंडों पर चोट
प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया के सामने एक असहज लेकिन बेहद जरूरी प्रश्न रखा, क्या हम आतंकवाद को लेकर वाकई ईमानदार हैं? ऐसा इसलिए क्योंकि एक ओर IMF और वर्ल्ड बैंक जैसे वैश्विक संस्थान पाकिस्तान जैसे देश को फंडिंग देते हैं जो आतंकवाद को बढ़ावा देता है दूसरी ओर इन संस्थानों से अपेक्षा की जाती है कि वे वैश्विक शांति सुनिश्चित करें। यह सीधा विरोधाभास है। पीएम मोदी ने साफ पूछा कि क्या आतंक फैलाने वालों और आतंक से पीड़ितों को एक ही तराजू में तौला जाएगा? क्या हमारे ग्लोबल institutions एक मज़ाक बन कर रह जाएंगे? इस कटाक्ष का केंद्र पाकिस्तान था- भारत का पड़ोसी, जो दशकों से आतंकवाद का आश्रयदाता रहा है और अब भी अपने गिरेबान में झांकने के बजाय दुनिया से आर्थिक मदद मांगता फिरता है।
पाखंड पर प्रहार
प्रधानमंत्री मोदी ने अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका और पश्चिमी देशों को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने बिना लाग-लपेट के कहा कि कुछ देश आतंकवाद को लेकर ‘selective outrage’ दिखाते हैं। अपने हितों के अनुरूप प्रतिबंध लगाते हैं, लेकिन जब बात उन देशों की आती है जो आतंकवाद के खुले समर्थक हैं तब या तो चुप्पी साध लेते हैं या उन्हें आर्थिक मदद देकर पुरस्कृत करते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस आलोचना में नैतिक साहस है। वैश्विक मंच पर अमेरिका और यूरोप जैसे शक्तिशाली देशों की नीति पर उंगली उठाना भारत की बढ़ती कूटनीतिक ताकत और नैतिक नेतृत्व का प्रमाण है।
मानवता के पक्ष में स्पष्ट आवाज
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘आतंक या आतंकियों का साथ देना, पूरी मानवता के साथ विश्वासघात है।’ यह बयान एक स्पष्ट संदेश देता है कि भारत अब केवल अपने लिए नहीं बल्कि समूची मानवता के लिए आतंकवाद के विरुद्ध आवाज उठाने को तैयार है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर हमने आज निर्णायक कदम नहीं उठाए तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा। यह न सिर्फ एक चेतावनी है बल्कि एक वैश्विक आह्वान है, आतंकवाद के विरुद्ध तटस्थ रहना अब विकल्प नहीं है।
भारत सिर्फ ‘भागीदार’ नहीं, ‘पथप्रदर्शक’ बना
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने वैश्विक नेताओं को याद दिलाया कि यह हमला सिर्फ भारत पर नहीं था बल्कि यह पूरी सभ्यता, गरिमा और मानवीय मूल्यों पर हमला था। उन्होंने सभी देशों द्वारा इस हमले की निंदा करने के लिए आभार तो प्रकट किया लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि अब सिर्फ संवेदना पर्याप्त नहीं है, आतंकवाद के ख़िलाफ कड़ी कार्रवाई और स्पष्ट नीति बेहद जरूरी है। G7 सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी की यह बातें केवल एक देश के प्रधानमंत्री की नहीं बल्कि एक वैश्विक नैतिक नेतृत्वकर्ता की आवाज है। भारत अब केवल एक ‘भागीदार’ नहीं बल्कि एक ‘पथप्रदर्शक’ बनकर उभरा है। आतंकवाद पर दोहरी नीति रखने वालों की आंखों में आंखें डालकर सवाल पूछने की ताकत भारत को उसकी कूटनीतिक परिपक्वता और वैश्विक विश्वास के चलते मिली है।
वैश्विक संस्थानों के लिए आत्ममंथन का समय
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की G7 में दी गई चेतावनी ने आतंकवाद के प्रति विश्व समुदाय की आत्मगत लापरवाही और संस्थागत पाखंड को बेनकाब किया है। IMF और वर्ल्ड बैंक जैसे संस्थानों द्वारा आतंक पोषित देशों को आर्थिक मदद देना न सिर्फ एक रणनीतिक भूल है बल्कि एक नैतिक पतन भी है और इस पतन की कीमत मासूम लोग कभी कश्मीर में, कभी काबुल में तो कभी पेरिस या न्यूयॉर्क में अपने लहू से चुका रहे हैं। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में यह कह दिया कि अब सिर्फ संवेदना नहीं, ठोस कार्रवाई चाहिए। अब वक्त आ गया है कि वैश्विक संस्थाएं अपने दोहरे मापदंड छोड़ें क्योंकि अगर आतंकवादियों को आर्थिक ऑक्सीजन मिलती रही तो कोई भी देश, कोई भी नागरिक, सुरक्षित नहीं रहेगा। यदि पश्चिमी देश अब भी नहीं जागे तो इतिहास उन्हें निर्दयी, पाखंडी और असफल घोषित करने में देर नहीं करेगा। भारत की यह आवाज एक देश की नहीं, पूरी मानवता की आत्मा की पुकार है और उसे नजरअंदाज करना अब विकल्प नहीं, अपराध है।