बीजिंग। चीन ने भारत की चिंताओं को दरकिनार करते हुए तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में यारलुंग सांगपो नदी के निचले इलाकों में लगभग 1.2 ट्रिलियन युआन (167.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर) लागत वाली जलविद्युत परियोजना का निर्माण आधिकारिक तौर पर शुरू कर दिया है। चीनी परिषद ने अपनी वेबसाइट पर यह जानकारी दी है। परिषद के बयान में कहा गया है “चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग ने शनिवार को यारलुंग ज़ंगबो नदी के निचले इलाकों में एक जलविद्युत परियोजना के निर्माण की शुरुआत की घोषणा की।” इस परियोजना में पांच (सीढ़ीदार) कैस्केड जलविद्युत संयंत्र शामिल होंगे, जिनकी कुल लागत लगभग 1.2 ट्रिलियन युआन (लगभग 167.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर) होने का अनुमान है। इस परियोजना से बनने वाली बिजली का इस्तेमाल मुख्य रूप से बाहरी खपत के साथ-साथ तिब्बत में स्थानीय मांग लिए भी किया जाएगा।
इस जलविद्युत परियोजना का निर्माण कार्य चाइना याजियांग ग्रुप कंपनी कर रही है जो परियोजना के पूरा होने के बाद इसका संचालन भी करेगी। इस समय दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत संयंत्र मध्य चीन के हुबेई प्रांत में यांग्त्ज़ी नदी पर स्थित सैंक्सिया (तीन घाटियां) माना जाता है। सैंक्सिया जलविद्युत संयंत्र की डिज़ाइन क्षमता 22.4 मिलियन किलोवाट है, और इसका निर्माण अक्टूबर 2008 में पूरा हुआ था। इससे पहले, चीनी मीडिया ने बताया था कि नए जलविद्युत संयंत्र की नियोजित स्थापित क्षमता 60 मिलियन किलोवाट होगी, जो सैंक्सिया की स्थापित क्षमता से लगभग तीन गुना अधिक है।
भारत ने जताया था विरोध
गौरतलब है कि इस परियोजना के निर्माण की आधिकारिक शुरुआत से पहले भारत ने अपनी चिंता जता दी थी और इस वर्ष जनवरी की शुरुआत में, भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा था कि तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत स्टेशन बनाने की चीन की योजनाओं पर भारत नज़र रख रहा है। भारत ने चीन से आग्रह किया था कि वह ऐसी परियोजनाओं का निर्माण करते समय भारत और अन्य देशों के हितों का भी ख्याल रखे।
भारत के लिए क्यों है खतरा?
भारत इस परियोजना का इस लिहाज से भी विरोध कर रहा है, क्योंकि इसमें एक बांध तिब्बत पठार के पूर्वी छोर पर हिमालय की विशाल घाटी में बनाया जाएगा। यह क्षेत्र पहले ही भूकंप के नजरिए से काफी संवेदनशील है और इस विशाल परियोजना के निर्माण से यहां पारिस्थितकी संतुलन बिगड़ सकता है। यारलुंग सांगपो नदी दक्षिण-पश्चिमी तिब्बत में कैलाश पर्वत के पास जिमा यांगज़ोंग ग्लेशियर से निकलती है और इसकी लंबाई 1,700 किलोमीटर है यह भारत में अरूणाचल प्रदेश की सियांग नदी में, फिर असम में ब्रह्मपुत्र और बाद में बांग्लादेश पहुंचती है।