चंडीगढ़: देश की सबसे योजनाबद्ध और आधुनिक शहरों में गिने जाने वाले चंडीगढ़ की ट्रैफिक व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में है। चालान व्यवस्था के नाम पर शहर में एक संगठित अवैध वसूली तंत्र फल-फूल रहा है, जिसमें कथित रूप से सिपाही से लेकर थानेदार तक की मिलीभगत सामने आ रही है। खासकर बाहरी राज्यों, विशेषकर हरियाणा और पंजाब नंबर की गाड़ियों को निशाना बनाकर एक ‘चालान व्यापार’ चलाया जा रहा है, जिसने आम जनता को त्रस्त और व्यापारियों को पलायन पर मजबूर कर दिया है।
पैसों के चक्कर में बुजुर्ग महिला व मरीजों को भी परेशान किया जा रहा है।
जंक्शन पर चालान नहीं, सौदेबाज़ी का खेल
शहर के कई मुख्य ट्रैफिक जंक्शन जैसे हाउसिंग बोर्ड, कला ग्राम, रेलवे स्टेशन लाइट प्वाइंट, ट्रांसपोर्ट चोक, सेक्टर 26 जंक्सन 42 ग्रेन मार्किट, सेक्टर 28 इंडस्ट्रियल एरिया फेज 1, सेक्टर 11-12 लाइट प्वाइंट, पीजीआई चौक, मटौर, सेक्टर-43 और ट्रिब्यून चौक व चंडीगढ के सभी बॉडर सहित सैकड़ों प्वाइंट्स पर तैनात ट्रैफिक पुलिसकर्मियों द्वारा एक नई चालान संस्कृति चल रही है। सूत्रों और प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, जब कोई वाहन – खासकर बाहरी राज्य का – रुकवाया जाता है, तो ड्राइवर की खिड़की में हाथ डालकर सबसे पहले ड्राइविंग लाइसेंस मांगा जाता है। इसके बाद शुरू होता है असली खेल – पुलिसकर्मी खुद ही बताते हैं कि “कोर्ट का चालान 5000 का पड़ेगा, लेकिन अभी 500 में ही काम चला देगे ।”
कैमरे हैं, पर कागज़ की पर्ची पर नंबर नोट होते हैं
शहर में ट्रैफिक सुधार के लिए 300 करोड़ की लागत से हाईटेक कैमरे लगाए गए हैं, लेकिन व्यवहार में पुलिस अब भी पुराने ढर्रे पर काम कर रही है। चालान के लिए न तो रसीद दी जाती है और न ही डिजिटल रिकॉर्ड बनाया जाता है। खाली कागज़ पर रोकने वाले वाहनों के नंबर नोट किए जाते हैं और शाम को इन नंबरों के आधार पर ‘बांटने’ का हिसाब होता है। हर रैंक – थानेदार, हवलदार, सिपाही, होमगार्ड – का ‘फिक्स हिस्सा’ तय होता है।
सिपाही के हाथ में चालानिंग मशीन, पर यह नियमों के खिलाफ
नियम के अनुसार केवल ट्रैफिक इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी ही चालान मशीन का प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन धरातल पर सिपाही खुद मशीन लेकर घूमते हैं और जुर्माना तय करते हैं। हैरानी की बात ये है कि इस अवैध प्रक्रिया को रोकने की कोई ठोस पहल नजर नहीं आती। थानेदार व हवलदार रैंक का कर्मचारी दूर खड़ा होकर पूरे मामले को सुपरविजन करता है।
पिक ऑवर में गाड़ियों को रोकने की मनाही – लेकिन होता उल्टा
चंडीगढ़ पुलिस मुख्यालय ने स्पष्ट निर्देश जारी कर रखे हैं कि सुबह 8 से 11 और शाम 4 से 6 बजे तक पिक आवर में ट्रैफिक सुगम बनाए रखने के लिए गाड़ियों को न रोका जाए, लेकिन यहीं पर सबसे ज़्यादा वसूली की जाती है। इसी समय यात्री, कर्मचारी और कारोबारी शहर में आते-जाते हैं और इनकी गाड़ियां सबसे अधिक निशाने पर रहती हैं।
औरों को नसीहत, खुद मियां फ़ज़ीहत"
चंडीगढ़ ट्रैफिक पुलिस के अधिकतर पुलिसकर्मियों की अपनी ही गाड़ियों पर न तो हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट (HSRP) लगी है और न ही वाहन पूरी तरह से ट्रैफिक नियमों के अनुरूप हैं।
आम जनता को नियम सिखाने वाले ये कर्मी खुद नियमों की धज्जियाँ उड़ाते नजर आते हैं।
विडंबना यह है कि यही कर्मचारी हाई सिक्योरिटी प्लेट या अन्य कमियों को लेकर लोगों को चालान के नाम पर रोकते हैं, जबकि खुद की गाड़ियाँ नियमों से परे खड़ी होती हैं।
जनता का सवाल:
“क्या ट्रैफिक नियम सिर्फ आम लोगों के लिए हैं? पहले खुद नियम पालन करें, फिर दूसरों को सिखाएँ। यह विरोधाभास चंडीगढ़ पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
हरियाणा-पंजाब के वाहनधारकों में डर
हरियाणा और पंजाब के लोगों का कहना है कि वे अपनी ही राजधानी में वाहन लेकर आने से डरते हैं। ये भी उल्लेखनीय है कि चंडीगढ़ ट्रैफिक पुलिस के वर्तमान एसएसपी सुमेर प्रताप सिंह हरियाणा काडर के आईपीएस अधिकारी हैं, इसके बावजूद हरियाणा की गाड़ियों को ही सबसे अधिक टारगेट किया जाना चिंता का विषय बन गया है।
पंजाब के मुख्यमंत्री भी कर चुके हैं कटाक्ष
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान पहले भी कई बार चंडीगढ़ ट्रैफिक पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठा चुके हैं। उन्होंने इसे आम जनता के उत्पीड़न का माध्यम बताया था। इसके बावजूद कोई ठोस सुधार नहीं हुआ।
पहले भी हो चुकी है कार्रवाई, फिर भी जारी है खेल
दो साल पहले पीजीआई स्मॉल चौक पर अवैध वसूली के मामले में तत्कालीन एसएसपी मनीष चौधरी ने कई पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया था, लेकिन तंत्र अभी भी उसी ढर्रे पर काम कर रहा है। वसूली का ‘नेटवर्क’ इतना गहरा है कि एक-दो निलंबनों से भी कुछ नहीं बदला।
चंडीगढ़ की ट्रैफिक तानाशाही से व्यापार भी प्रभावित
बढ़ती पुलिस तानाशाही के कारण चंडीगढ़ में बाहर से आने वाले व्यापारियों और ग्राहकों की संख्या में गिरावट आई है। परिणामस्वरूप शहर का व्यापार पड़ोसी क्षेत्रों – मोहाली, जीरकपुर और पंचकूला की ओर शिफ्ट हो गया है। कारोबारी संगठनों का कहना है कि यह वसूली तंत्र शहर की आर्थिक गतिविधियों पर सीधा असर डाल रहा है।
क्या कोई ठोस सुधार होगा?
चंडीगढ़ को भारत का सबसे ‘स्मार्ट सिटी’ बनाने की दिशा में प्रशासन ने करोड़ों रुपए खर्च किए हैं, लेकिन ट्रैफिक पुलिस की यह कार्यशैली शहर की छवि को धूमिल कर रही है। सवाल यह है – क्या इस गोरखधंधे पर कोई लगाम लगेगी? क्या दोषियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई होगी या सब कुछ मिलीभगत में यूं ही चलता रहेगा?